Saturday 23rd of November 2024

UP : सुप्रीम कोर्ट का फैसला- यूपी में ओबीसी कोटा में कोटे का मुद्दा पकड़ रहा है तूल...

Reported by: Gyanendra Shukla  |  Edited by: Rahul Rana  |  August 03rd 2024 01:29 PM  |  Updated: August 03rd 2024 01:29 PM

UP : सुप्रीम कोर्ट का फैसला- यूपी में ओबीसी कोटा में कोटे का मुद्दा पकड़ रहा है तूल...

ब्यूरो: बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। सात जजों की संवैधानिक पीठ ने एससी और एसटी के बीच समान प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों को उचित आधार पर एससी-एसटी के आरक्षण को कोटा के भीतर कोटा बनाने की मंजूरी दे दी है। चूंकि देश के तमाम हिस्सों में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी आरक्षण में भी सब कैटेगरी को लेकर मांग उठती रही है। शीर्ष अदालत के इस फैसले ने अब ओबीसी आरक्षण के बंटवारे की राह भी खोल दी है। बिहार से लेकर राजस्थान, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में ओबीसी आरक्षण को कोटा के भीतर कोटा बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है। यूपी में भी लंबे अरसे से जारी ये मांग फिर से तेज होने लगी है।

सुभासपा ने उठाई अति पिछड़े व सर्वाधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग से कोटे की मांग

ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) पहले से ही पिछड़ी जातियों में अत्यधिक पिछड़ी व सर्वाधिक पिछड़ी जातियों के ले अलग से कोटा दिए जाने की मांग करती रही है। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने कहा कि एससी/एसटी की तरह ओबीसी आरक्षण में भी सब कैटेगरी बनाने पर विचार किया जाना चाहिए। राजभर ने कहा कि उनकी पार्टी अपनी स्थापना के समय से इसकी लड़ाई लड़ रही है। वर्ष 2018 में जस्टिस राघवेंद्र सिंह की अध्यक्षता वाली सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट सरकार को तत्काल लागू करनी चाहिए। जिससे अति पिछड़ों और अति दलितों को न्याय मिल सके। इनकी भी सभी क्षेत्रों में भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

निषाद पार्टी ने भी उठाई कोटे में कोटे की मांग

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री डॉ संजय कुमार निषाद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि बीजेपी,  निषाद पार्टी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सोच है कि समाज के पिछले और निचले पायदान पर रह रहे गरीब तबके को लाभ मिले। बहुत पहले से हम इस बात के समर्थक हैं कि एससी/एसटी और ओबीसी में आरक्षण का लाभ पा चुके समृद्ध लोगों को आरक्षण छोड़ना चाहिए, जिससे अन्य लोगों को लाभ मिल सके।

सपा ने इस मुद्दे को लेकर फिर उठाई जातिगत जनगणना की मांग

पीडीए यानी पिछड़ा-दलित व अल्पसंख्यक के फार्मूले पर सियासी कदम आगे बढ़ा रही समाजवादी पार्टी अब अपनी पुरानी मांग जितनी जिसकी आबादी उतनी उसकी हिस्सेदारी को उठा रही है। पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष पूर्व एमएलसी राजपाल कश्यप कहते हैं कि हमारी पार्टी भी यही मांग कर रही है कि आरक्षित श्रेणी ही नहीं सभी वर्ग की जातीय जनगणना कराकर उनको आबादी के अनुपात में आरक्षण दें। जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी होना चाहिए। तब ही वंचितों को उनका अधिकार मिल सकेगा।  सुप्रीम कोर्ट ने भी एससी/ एसटी के आरक्षण में वंचित वर्ग को कोटे में कोटा का लाभ देने की बात कही है।

बीजेपी सरकार व संगठन मे भी इस मुद्दे को लेकर सक्रियता तेज हुई

योगी सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं  बीजेपी ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र कश्यप इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि वर्षों से सामाजिक संगठन ओबीसी में अति पिछड़ों को उनके आरक्षण का अधिकार देने की मांग उठा रहे थे। अब भी ओबीसी में करीब 35 प्रतिशत लोगों को आरक्षण का अधिकार नहीं मिल सका है। अब सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी के साथ ओबीसी वर्ग में भी कोटे में कोटा देने का प्रावधान करने का निर्णय किया है। इससे वंचित वर्ग को बड़ी राहत मिलेगी। कश्यप कहते हैं कि हमारी यूपी की सरकार, केंद्र सरकार के साथ मिलकर इस पर शीघ्र नीति बनाएगी। ओबीसी आयोग के पूर्व सदस्य हीरा ठाकुर कहते हैं कि ओबीसी में में भी एक वर्ग अति पिछड़ा है। कुछ बलवान लोगों तक ही नहीं सभी को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। इसके लिए उनका आरक्षण देते समय उपवर्गीकरण करने का निर्णय स्वागत योग्य है। इसकी मांग कई साल से उठ रही है।

ओबीसी आरक्षण से जुड़ी कवायदें सत्तर के दशक से ही तेज होने लगी थीं

यूपी में छेदीलाल साथी की अध्यक्षता में अक्टूबर 1975 में पिछड़े वर्गों के लिए एक आयोग गठित किया गया था। जिसने ओबीसी के लिए 29.50 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की, जिसमें से 17 फीसदी सबसे पिछड़े समुदायों को दिए जाने की बात कही गई थी। राम नरेश यादव की जनता पार्टी सरकार ने साल 1977 में उत्तर प्रदेश में ओबीसी के लिए सरकारी नौकरियों में 15 फीसदी आरक्षण लागू कर दिया था। 1994 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में बनी सपा-बीएसपी गठबंधन सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुरूप ओबीसी आरक्षण को बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था।

कुछ ओबीसी संगठनों की मांग पर हुकुम सिंह समिति का गठन हुआ था

17 जनवरी,2001 को राष्ट्रीय निषाद संघ और निषाद वंशीय अधिकारी/ कर्मचारी परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल यूपी के तत्कालीन सीएम राजनाथ सिंह से मिला। इनकी ओर से पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उड़ीसा की तर्ज पर यूपी के मल्लाह, केवट, बिंद,कहार, धीवर, मांझी को एससी आरक्षण दिलाने की अपील की गई। इनके अलावा कुछ संगठनों ने सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग 1974-75 की रिपोर्ट को भी राजनाथ सिंह के सामने पेश किया। जिस पर तत्कालीन सरकार ने सकारात्मक रुख जताते हुए हुकुम सिंह की अध्यक्षता में सामाजिक न्याय समिति-2001 का गठन कर दिया।

सामाजिक न्याय समिति ने यूपी में पहली बार ओबीसी कोटे के वर्गीकरण की सिफारिश की थी

आज से तेईस साल पहले हुकुम सिंह की अध्यक्षता में गठित सामाजिक न्याय समिति ने पाया कि आरक्षण का लाभ सबसे पिछड़े वर्गों तक नहीं पहुंच सका। समिति ने अपनी रिपोर्ट 8 अक्टूबर, 2001 को तत्कालीन सीएम राजनाथ सिंह को सौंप दी थी। इस समिति ने ओबीसी की मूल 79 जातियों को 3 श्रेणियों में विभाजित करने की सिफारिश की थी। इस समिति ने पिछड़ा वर्ग में अहीर/यादव को 5 फीसदी, अति पिछड़ा वर्ग में कुर्मी, लोधी, कम्बोज, सोनार, कलवार, गोसाई, जाट, गुर्जर को 9 फीसद और मल्लाह, केवट, बिन्द, कहार, पाल, लोहार बढ़ई, बियार, कुम्हार, नाई, बारी, तेली, किसान, राजभर, नोनिया, मोमिन अंसारी, कसाई, फकीर, कुजड़ा, बंजारा, नायक, धीवर, मनिहार, माहीगिर हजाम आदि 70 सर्वाधिक पिछड़ी जातियों को 14 फीसदी आरक्षण कोटा की सिफारिश की थी।

तमाम घटनाक्रमों के बाद हुकुम सिंह समिति की सिफारिशें ठंडे बस्ते में चली गई

राजनाथ सिंह की सरकार ने साल 2002 में सामाजिक न्याय समिति की सिफारिश को लागू करने की अधिसूचना जारी की थी। पर इसका विरोध उन्हीं की कैबिनेट के सदस्य अशोक यादव ने किया। जिन्होंने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की। जिसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अधिसूचना पर रोक लगा दी। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट अपील दायर की, जिसे शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया। साल 2002 में सत्ता परिवर्तन हो गया मायावती सीएम बनीं, विधानसभा चुनाव में बीजेपी 88 सीटों पर सिमट गई। साल 2003 में बीजेपी की परोक्ष रूप से मदद लेकर सपा ने सरकार बना ली। तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने ओबीसी के बंटवारे की मांग को बेअसर करने के लिए 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का दांव चल दिया। केन्द्र सरकार को 5 मार्च 2004 को सिफारिश पत्र भेजा। बाद में 2016 में अखिलेश यादव ने अपनी सरकार में भी ओबीसी की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। ये सभी कोशिशें निष्प्रभावी ही रहीं। हालांकि इनकी वजह से हुकुम सिंह  समिति की सिफारिशें फाइलों में ही दर्ज रह गईँ।

योगी 1.0 सरकार में भी गठित हुई थी सामाजिक न्याय समिति

साल 2017 में यूपी की सत्ता में आई योगी सरकार में ओमप्रकाश राजभर भी शामिल थे। उस दौरान हुए तमाम घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में पिछड़े वर्गों के मिल रहे आरक्षण की स्थिति का पता लगाने के लिए सेवानिवृत्त जज राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में एक सामाजिक न्याय समिति गठित की गई थी। जिसमें पूर्व नौकरशाह जेपी विश्वकर्मा, बीएचयू के अर्थशास्त्र के प्रो भूपेंद्र सिंह और सीनियर एडवोकेट अशोक राजभर भी शामिल थे। सामाजिक न्याय समिति ने पिछड़ों को 79 उपजातियों में वर्गीकरण कर यूपी सरकार को 2019 में रिपोर्ट सौंप दी थी। इस रिपोर्ट ने अपनी सिफारिश में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को तीन समान हिस्सों में बांटने को कहा। इसके तहत पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग बनाने की सिफारिश की गई। समिति ने यादव, कुर्मी, चौरसिया व पटेल जाति को पिछड़ा वर्ग में रखते हुए 27 फीसदी में से 7 फीसदी आरक्षण देने की वकालत की। गुर्जर, लोध, कुशवाहा, शाक्य, तेली, साहू, सैनी, माली,पाल, सोनार, कलवार,गिरि, नाई को अति पिछड़ा वर्ग की जातियों में रखते हुए इन्हें 11 फीसदी आरक्षण देने की बात कही। मल्लाह, केवट, बिंद,बियार,राजभर, बंजारा, किसान, नोनिया, धीवर, कहार, बारी, रंगरेज, मोमिन अंसार,कानू, हज़ाम,मुस्लिम धोबी, मोची, कसाई, कुजड़ा, जुलाहा, गद्दी को सर्वाधिक पिछड़ी जातियों में शामिल करते हुए इनके लिए 9 फीसदी कोटा की सिफारिश की। हालांकि साल 2019 के आम चुनाव के मद्देनजर उपजे समीकरणों के चलते इन सिफारिशों पर भी अमल संभव नहीं हो सका।

बहरहाल, अब फिर से बहस होने लगी है कि ओबीसी वर्ग के आरक्षण की सुविधा पर कुछ विशेष वर्गों का प्रभुत्व बना हुआ है। आरक्षण के लाभ को सर्वाधिक  पिछड़ी जातियों तक पहुंचाने के लिए कदम उठाने की मांग तेज होने लगी है। जाहिर है आरक्षण में बंटवारे के फ़ॉर्मूला के जरिए नए जातीय समीकरणों की जमीन भी तैयार होगी। फिलहाल सभी सियासी दल इन समीकरणों से होने वाले संभावित नफा-नुकसान परख रहे हैं आकलन कर रहे हैं जिसके बाद अगले दांव चले जाएंगे।  

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