Friday 5th of July 2024

UP: राहुल की रायबरेली की सीट रही बरकरार, यूपी में कांग्रेस की मुहिम पकड़ेगी रफ्तार

Reported by: PTC News Himachal Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  June 19th 2024 04:37 PM  |  Updated: June 19th 2024 04:42 PM

UP: राहुल की रायबरेली की सीट रही बरकरार, यूपी में कांग्रेस की मुहिम पकड़ेगी रफ्तार

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  वायनाड संसदीय सीट से राहुल गांधी का इस्तीफा मंजूर हो गया है, दक्षिण भारत की इस सीट के बजाए रायबरेली से संसद सदस्यता बरकरार रखने के राहुल के फैसले के कांग्रेस पार्टी के लिए अहम मायने हैं। माना जा रहा है कि जहां प्रियंका गांधी के जरिए पार्टी दक्षिण भारत के समीकरणों को साधेगी वहीं, राहुल के जरिए कांग्रेस आने वाले दिनों में यूपी में अपनी सक्रियता में खासा इजाफा करेगी। यहां होने वाले उपचुनाव के साथ साथ साल 2027 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस बेहतर परिणाम लाने की मुहिम में जुटेगी। 

रायबरेली से किए गए सोनिया गांधी के वायदे को निभाया

गौरतलब है कि चार जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही कयास लग रहे थे कि राहुल किस सीट को रखेंगे और किससे इस्तीफा देंगे। इस सवाल का जवाब जब कांग्रेसी आलाकमान तलाश रहा था तब बीती 17 मई को रायबरेली की जनसभा में सोनिया गांधी की उस भावुक अपील पर भी फोकस किया गया जिसमें उन्होंने कहा था, “मैं आपको अपना बेटा सौंप रही हूं। जैसे आपने मुझे अपना माना, वैसे ही राहुल को अपना मानकर रखना। राहुल आपको निराश नहीं करेंगे”। जाहिर है कि नेहरू गांधी परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली पर सोनिया ने अपनी विरासत राहुल को सौंप दी। अब जब राहुल ने रायबरेली से सांसदी जारी रखने का फैसला ले लिया है तो कांग्रेस ने इसे ये कहकर प्रचारित करना शुरू कर दिया है कि सोनिया ने  वोटरों से जो वादा किया उसे निभाने की पहली कड़ी में रायबरेली सीट से राहुल का प्रतिनिधित्व जारी रहेगा।

वायनाड सीट की अहमियत भी कम नहीं, राहुल नहीं तो प्रियंका मौजूद रहेंगी

चूंकि राहुल गांधी को चुनाव नतीजों के 14 दिनों में ही दो में से एक संसदीय सीट छोड़ने का फैसला लेना ही था। पर वायनाड सीट से नाता तोड़ने का फैसला भी जोखिम भरा था। क्योंकि इससे दक्षिण भारत में पैठ बनाने की कांग्रेस की रणनीति पर आंच आती। लिहाजा ये तय हुआ कि यहां से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ेंगी। दरअसल इसके जरिए संदेश देने की कोशिश हुई कि भले ही राहुल वायनाड से सांसद न रहें लेकिन नेहरू-गांधी परिवार के लिए इस सीट की अहमियत है और उनके परिवार का एक सदस्य यहां से जरूर जुड़ा रहेगा। खुद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बयान दिया कि वायनाड के लोगों का प्यार राहुल को मिला है। वे लोग चाहते हैं कि राहुल वायनाड में ही रहें, लेकिन कानून इसकी इजाजत नहीं देता। इसलिए वायनाड सीट से प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लड़ेंगी। प्रियंका ने भी कहा, “ मैं इस फैसले से बहुत खुश हूं। वायनाड का प्रतिनिधित्व करना मेरे लिए गर्व की बात होगी। मैं एक अच्छा प्रतिनिधि बनने की कोशिश करुंगी। मैं और राहुल वायनाड और रायबरेली में एक-दूसरे की मदद भी करेंगे”। राहुल ने भी जनता को साधने के लिए  भावुक बयान दिया, "वायनाड के लोग इस बारे में इस तरह सोच सकते हैं – अब उनके पास दो सांसद होंगे – एक मेरी बहन और एक मैं. मेरे दरवाजे जीवन भर आपके लिए हमेशा खुले हुए हैं. मैं वायनाड के हर एक व्यक्ति से प्यार करता हूं"।

कई दशकों के इंतजार के बाद मिली कामयाबी से यूपी की अहमियत बढ़ी

बीते दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का ग्राफ नीचे गिरता जा रहा था। साल 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस को 7.53 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटें मिली थीं। तो 2019 में वोट शेयर घटकर 6.36 फीसदी पहुंच गया और महज रायबरेली की सीट ही कांग्रेस जीत सकी। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 2.33 फीसदी हो गया और महज दो सीटों ही पा सकी। पर साल 2024 का आम चुनाव पार्टी की उम्मीदों को खिला गया। कांग्रेस का वोट शेयर 9.46 फीसदी हो गया और छह सीटों की बढ़त हासिल हुई। बढ़त के इस अप्रत्याशित दौर में पार्टी रणनीतिकारों को लगा कि यूपी में राहुल की उपस्थित बतौर सांसद जरूरी हो चुकी है।  

वोटों के अंकगणित के लिहाज से भी रायबरेली वायनाड पर रहा भारी

हालिया संपन्न आम चुनाव में वायनाड में 6,47,445 वोट हासिल कर राहुल गांधी ने 3,64,422 वोटों के मार्जिन से सीपीआई की एनी राजा को शिकस्त दी। जबकि 2019 में इसी सीट पर राहुल ने सीपीआई प्रत्याशी पीपी सुनीर को  4.31 लाख वोटों के रिकॉर्ड अंतर से मात दी थी। जाहिर है इस बार राहुल को पिछली बार के मुकाबले कम वोट हासिल हुए। वहीं, रायबरेली में 6,87,649 वोट हासिल करके राहुल ने बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह को 3,90,030 वोटों से पटखनी देकर बेहद आसान जीत हासिल कर ली।  रायबरेली में राहुल को 66.17 फीसदी वोट मिले जबकि वायनाड में वोट शेयर 59.69 फीसदी रहा। तुलनात्मक तौर से रायबरेली में मिला समर्थन वायनाड के मुकाबले ज्यादा रहा।

दक्षिण में मजबूती के बाद अब उत्तर भारत पर कांग्रेस का फोकस

गौरतलब है कि इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केरल में 20 में से 14 सीटें मिलीं जबकि तमिलनाडु और कर्नाटक में पार्टी को 9-9 सीटें हासिल हुईं। यहां पार्टी को विस्तार करने और पैठ बनाने में मनमाफिक कामयाबी मिल चुकी है। अब हिंदी पट्टी में मजबूती करने के लिए पार्टी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में वर्चस्व कायम करने के लिए उत्तर भारत में मजबूती अहम शर्त है। और संख्या बल के लिहाज से यूपी सर्वोपरि है। इसी सूबे ने अपने दम पर बहुमत की सरकार बनाने के बीजेपी के सपने को जमींदोज कर दिया। इस बार यूपी में कांग्रेस ने कई सीटें दशकों के इंतजार के बाद हासिल कीं। कभी कांग्रेस के परंपरागत रहे मुस्लिम और दलित वोटों की वापसी के संकेत ने भी पार्टी थिंक टैंक के लिए यूपी को प्राथमिकता देने की जरूरत को हाईलाइट कर दिया है। 

विपक्षी स्पेस पर प्रभुत्व कायम करने के प्रतीक के तौर पर यूपी जरूरी

दरअसल, यूपी के वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी खुद सांसद हैं। चूंकि सारा विपक्षी जुटान मोदी के खिलाफत में ही लामबंद होता रहा है। लिहाजा यूपी से ही सांसद बने रहकर और धारदार तेवरों के जरिए राहुल मोदी के समानांतर विपक्षी स्पेस के अगुआ होने का संकेत आसानी से दे सकते हैं। वैसे भी 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी की सियासी अहमियत समझना मुश्किल काम नहीं। वैसे भी रायबरेली में राहुल के चुनाव लड़ने का असर अमेठी सीट पर भी पड़ा यहां कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा ने बीजेपी की स्मृति ईरानी को करारी शिकस्त दे दी। सपा के साथ गठजोड़ करके जिन 17 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा उनमें से छह पर जीत और 11 पर दूसरे पायदान पर रही। वाराणसी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने पीएम मोदी के जीत के मार्जिन को सिकुड़ा दिया। जाहिर है यूपी का माहौल कांग्रेसी रणनीतिकार अपने लिए सकारात्मक मानने लगे हैं।

वायनाड से प्रियंका के उतरने पर परिवारवाद के आरोपों की काट की तैयारी

कांग्रेसी रणनीतिकार वाकिफ थे कि जैसे ही राहुल के वायनाड सीट छोड़ने और वहां के उपचुनाव में प्रियंका वाड्रा को चुनाव लड़ने का फैसला होगा विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिलेगा। बीजेपी ने ऐसा किया भी, पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस पर ‘परिवारवाद की राजनीति’ में लिप्त होने का आरोप मढ़ दिया। कांग्रेसी खेमे ने इन आरोपों की काट खोज ली है। अब कांग्रेसी नेता दो साल पहले उदयपुर में हुए चिंतन शिविर की दलील दे रहे हैं। जब एक परिवार एक टिकट के फार्मूले पर मंथन हुआ था। पर सहुलियत के लिए ये शर्त भी जोड़ दी थी कि नेताओं के जो परिजन चुनाव लड़ने के इच्छुक हों उनके लिए कम से कम पांच साल संगठन में काम करना जरूरी है। प्रियंका गांधी इस मापदंड पर इसलिए खरी उतरती हैं क्योंकि जनवरी, 2019 के बाद से लगातार वह कांग्रेस संगठन में सक्रिय हैं।  

PTC News Himachal
PTC NETWORK
© 2024 PTC News Himachal. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network