Monday 30th of September 2024

UP: नेता प्रतिपक्ष के लिए माता प्रसाद पाण्डेय का चयन, सपा सुप्रीमो का बड़ा दांव...

Reported by: Gyanendra Shukla  |  Edited by: Rahul Rana  |  July 29th 2024 10:44 AM  |  Updated: July 29th 2024 10:44 AM

UP: नेता प्रतिपक्ष के लिए माता प्रसाद पाण्डेय का चयन, सपा सुप्रीमो का बड़ा दांव...

ब्यूरो: बीते कुछ दिनों से यूपी में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी को लेकर अटकलें तेज थीं, दरअसल अब तक नेता प्रतिपक्ष रहे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कन्नौज से संसदीय चुनाव जीतने के बाद विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था तो नेता प्रतिपक्ष का पद भी रिक्त हो गया था। बीते दिनों विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के पद पर लाल बिहारी यादव के नाम का ऐलान किया गया। तभी से कयास लग रहे थे कि आम चुनाव में कारगर रहे पीडीए फार्मूले यानी पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक को ख्याल में रखकर ही नेता प्रतिपक्ष का नाम तय किया जाएगा। पर रविवार को समाजवादी पार्टी विधायक दल की बैठक के बाद पार्टी की ओर से माता प्रसाद पाण्डेय के नाम का ऐलान हुआ, जिसने सियासी विश्लेषकों को चौंका दिया।

नेता प्रतिपक्ष और मुख्य सचेतक सहित अहम विधायी पदों पर नई नियुक्ति

माता प्रसाद पाण्डेय नेता प्रतिपक्ष का अहम ओहदा संभालेंगे जबकि अमरोहा से सपा विधायक महबूब अली विधानसभा के अधिष्ठाता मण्डल होंगे, मुरादाबाद की कांठ सीट से विधायक कमाल अख्तर मुख्य सचेतक और प्रतापगढ़ की रानीगंज सीट से विधायक राकेश कुमार उप सचेतक का जिम्मा संभालेंगे। रायबरेली के ऊंचाहार से सपा विधायक मनोज पाण्डेय अभी तक विधानसभा मे पार्टी के मुख्य सचेतक हुआ करते थे। लेकिन राज्यसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को समर्थन करते हुए इन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था।

पहली बार सपाई खेमे ने नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए तय किया झगड़ा चेहरा

साल 1993 में अस्तित्व में आने के बाद यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद सपा के ही पास रहा। पार्टी की ओर से छह बार ओबीसी और एक बार मुस्लिम चेहरे को इस पद पर तैनाती दी गई। दो बार सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव, एक-एक बार धनीराम वर्मा, आजम खान, शिवपाल सिंह यादव, रामगोविंद चौधरी नेता प्रतिपक्ष रहे। योगीराज के बाद इस पद को संभाला अखिलेश यादव ने। पर तीन दशकों में पहली बार किसी अगड़े नेता को सपा की ओर से नेता प्रतिपक्ष की कमान सौंपी गई है।

छात्र राजनीति की सक्रियता से लेकर विधानसभा तक का सफर तय किया माता प्रसाद पाण्डेय ने

31 दिसंबर 1942 को सिद्धार्थनगर में जन्मे माता प्रसाद पाण्डेय छात्र राजनीति में खासे सक्रिय थे। साल 1980 में जनता पार्टी प्रत्याशी के तौर पर पहला चुनाव जीता था, 1985 में लोकदल से विधायक बने, 1989 में जनता दल के टिकट से चुनाव लड़े और जीते। साल 1991 में विधायक बने और स्वास्थ्य मंत्री का जिम्मा भी संभाला। साल 1996 मे इन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। साल 2002 में विधायक बने, मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार में श्रम व रोजगार मंत्री। साल 2007 और 2012 में भी चुनाव जीते। अखिलेश सरकार में विधानसभा अध्यक्ष का जिम्मा संभाला। लेकिन 2017 में ये चुनाव हार गए। हालांकि साल  2022 में सिद्धार्थनगर की इटवा सीट से चुनाव जीतकर सातवीं बार विधायक बनने में कामयाब हुए। अब नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी संभालेंगे।

चर्चाओं में छाए नामों से इतर माता प्रसाद पाण्डेय के नाम पर मुहर लगाना बड़ा दांव

यूं तो जो चर्चाएं हो रही थीं उसके मुताबिक इंद्रजीत सरोज सबसे अव्वल पायदान पर थे, इनके अलावा तूफानी सरोज, रामअचल राजभर और शिवपाल सिंह यादव का नाम भी रेस में माना जा रहा था, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पाण्डेय के जरिए बडा सियासी दांव चला है। आम चुनाव में उन्होंने सपा की ‘यादव-मुस्लिम पार्टी’ की छवि को बदला और पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक फार्मूले को सफलतापूर्वक लागू किया तो अब दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव और 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा सुप्रीमो अपना वोट बेस और व्यापक करना चाहते हैं।

जातीय आंकड़े और चुनावी प्रभाव के नजरिए से प्रभावी है ब्राह्मण वोट बैंक

यूं तो कोई आधिकारिक जातीय आंकड़ा तो नहीं है लेकिन सियासी दलों द्वारा क्षेत्रवार तैयार किए गए आंकड़ों के मुताबिक यूपी में ब्राह्मण वोटरों की तादाद 12 से 14 फीसदी के करीब है। यूपी की सवा सौ सीटों पर इस बिरादरी के वोटरों का खासा प्रभाव माना जाता है। दर्जन भर जिले ऐसे हैं जहां ब्राह्मण वोटरों की आबादी पन्द्रह फीसदी से अधिक है। ये जिले हैं.....बलरामपुर, बस्ती, संतकबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर और प्रयागराज। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में 89 फीसदी ब्राह्मण वोटरों से बीजेपी का समर्थन किया था। हालिया संपन्न हुए आम चुनाव में यूपी की 80 संसदीय सीटों से चुने गए जनप्रतिनिधियों में से 23 सांसद अगड़ी बिरादरियों से ताल्लुक रखते हैं। इनमें से सर्वाधिक 11 सांसद ब्राह्मण बिरादरी के हैं। जिनमें से 8 सांसद बीजेपी के हैं। तो बलिया से सपा के सनातन पाण्डेय, रायबरेली से कांग्रेस के राहुल गांधी और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा सांसद हैँ।

यूपी की सियासत में ब्राह्मण वोटरों को हासिल करने की सियासी दलों में होड़ रही है

यूपी के पश्चिमी हिस्से लेकर मध्य, पूर्वांचल और बुंदेलखंड की दर्जनों सीटों पर ब्राह्मण वोटर जीत-हार के समीकरण को प्रभावित करते हैं। लंबे वक्त तक ब्राह्मण वोटर कांग्रेस से ही जुड़े रहे। यूपी के 21 सीएम में से 6 ब्राह्मण रहे हैं, तीन बार तो नारायण दत्त तिवारी ही सीएम  रहे हैं। नब्बे के दशक से शुरु हुए मंडल और मंदिर के दौर में इस बिरादरी का झुकाव बीजेपी की ओर होता गया। पर दूसरे दलों ने इन वोटरों को रिझाने के लिए कई उपाय किए। साल 2007 में बीएसपी को मिले बहुमत के पीछे मायावती के दलित-ब्राह्मण फार्मूले को ही अहम वजह माना गया था। मुस्लिम व दलित वोटरों की तुलना मे कम संख्या मे होने के बावजूद ब्राह्मण वोटरों को प्रभावशाली वोटबैंक की तरह आंका जाता है। चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी और सपा-बीएसपी में इस वोट बेस को अपने हक में करने की भरपूर कोशिश होती रही है।

सपा सुप्रीमो का फैसला नैरेटिव की रणनीति के आईने से

चूंकि यूपी में ब्राह्मण और क्षत्रिय बिरादरियां मजबूत सियासी असर रखती हैं। सत्ता पर वर्चस्व रखने को लेकर दोनों मे होड़ भी होती रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ क्षत्रिय बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। बीजेपी ने ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम का पद देकर ब्राह्मण समीकरणों को भी साधा है पर केशव प्रसाद मौर्य के साथ ही ब्रजेश पाठक के भी सीएम से रिश्ते सहज नहीं माने जाते हैं। चूंकि सियासत में नैरेटिव अहम किरदार निभाता है। कई घटनाओं और मुद्दों का सहारा लेकर विपक्ष द्वारा ये प्रचारित किया जाता रहा है कि ब्राह्मणों में बीजेपी को लेकर नाराजगी पनपी है। माना जा रहा है कि कथित असंतोष के इसी नैरेटिव को भांपकर ही अखिलेश यादव ने ताजा फैसला लिया है। माता प्रसाद पाण्डेय के नाम पर मुहर लगाकर सपा ने बड़ा दांव जरूर चला है। पर इस कदम से निकले संदेश कितने कारगर होंगे, इसका कितना नफा होगा कितना नुकसान, इसके बाबत फैसला आने वाले दिनों की सियासत के रुख से तय होगा। 

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