ब्यूरो: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे उस केस की जिसका खुलासा तीन वर्ष पूर्व नोएडा में हुआ था। बाद में तफ्तीश बढ़ी तो पता चला कि ये अवैध धर्मपरिवर्तन का एक बड़ा सिंडिकेट है। इस मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने बारह दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई जबकि चार कसूरवारों को दस-दस वर्ष की सजा सुनाई गई है। इस केस के पीड़ित जनों को मुआवजा देने का भी फैसला सुनाया गया है। अवैध धर्मांतरण मामले में ये पहला केस है जिसमें सोलह लोगों को सजा सुनाई गई है।
बारह लोगों को उम्रकैद की सजा मिली, चार को दस-दस वर्ष कारावास की सजा
अवैध धर्मांतरण के दोषी करार दिए गए मोहम्मद उमर गौतम, सलाहुद्दीन जैनुद्दीन शेख, मुफ्ती काजी जहांगीर कासमी, इरफान शेख उर्फ इरफान खान, भुप्रियबंदों मानकर उर्फ अरसलान मुस्तफा, प्रसाद रामेश्वर कांवरे, कौशर आलम, डॉक्टर फराज शाह, मौलाना कलीम सिद्दीकी, धीरज गोविंद, सरफराज अली जाफरी,अब्दुल्ला उमर को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। भारतीय दंड संहिता की धारा 121 ए (राष्ट्रद्रोह) के तहत ये सजा दी गई है इसके साथ ही इन्हें 10-10 हजार रुपये जुर्माने की सजा भी सुनायी गई है| जबकि मन्नू यादव उर्फ अब्दुल, राहुल भोला उर्फ राहुल अहमद, मो. सलीम, कुणाल अशोक चौधरी उर्फ आतिफ को 10-10 साल की सजा दी गई है।
एनआईए कोर्ट ने मंगलवार को ही सोलह आरोपियों को दोषी करार दिया था
विशेष जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी की अदालत ने मंगलवार को अवैध धर्मांतरण के सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए बुधवार का दिन सजा देने के लिए मुकर्रर कर दिया था। अदालत ने मौलाना कलीम सिद्दीकी, उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर आलम सहित सभी दोषियों को देश भर में अवैध धर्मांतरण का रैकेट चलाने का कसूरवार करार दिया गया। इन्हें आईपीसी की धारा 417, 120बी, 153ए, 153बी, 295ए, 121ए, 123 व अवैध धर्मांतरण की धारा 3, 4, व 5 के तहत दोषी करार दिया गया। बुधवार को फैसला सुनाए जाने के दौरान सभी दोषी अदालत में मौजूद थे।
इस भयानक नेटवर्क का खुलासा तीन वर्ष पूर्व हुआ था
जून, 2021 में नोएडा स्थित डेफ सोसाइटी स्कूल के बाहर कुछ अभिभावकों ने हंगामा किया, आरोप था कि उनके बच्चों का बिना उनकी जानकारी के धर्मपरिवर्तन कराया गया है। इसके बाद नोएडा पुलिस हरकत में आई। शुरुआती पड़ताल में ही धर्म परिवर्तन के शातिर नेटवर्क की जानकारी उजागर हुई। विदेशी फंडिंग की बात भी सामने आई। पूरा मामला जब शासन के संज्ञान में आया तब एटीएस की टीमों को भी सक्रिय किया गया। मोहम्मद उमर गौतम को मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी के साथ 20 जून 2021 को दिल्ली के जामिया नगर से गिरफ्तार किया गया। इनसे पूछताछ में पता चला कि ये लोग धर्मांतरण का बड़ा सिंडिकेट संचालित करते हैं और इसके लिए विदेशों से हवाला के जरिये फंडिंग की जाती है।
एटीएस ने लखनऊ में एफआईआर दर्ज कराके शिकंजा कसना शुरू किया
शुरुआती तफ्तीश मिली चौंकाने वाली जानकारियों के बाद एटीएस की नोएडा यूनिट के सब इंस्पेक्टर विनोद कुमार ने 20 जून 2021 को लखनऊ के गोमती नगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया। भारतीय दंड संहिता की धारा 417, 120 बी, 121ए, 123, 153ए, 153बी, 295ए और 298 के साथ ही उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 की धारा 3/5/8 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। उसी साल सितंबर में मौलाना कलीम सिद्दीकी को मेरठ से गिरफ्तार किया गया।
धर्म परिवर्तन के लिए विदेशों से होती थी व्यापक फंडिंग
एटीएस को जांच में पता चला कि बहरीन से अवैध रूप से 1.5 करोड़ रुपए और अन्य खाड़ी देशों से 3 करोड़ रुपए का फंड आया। कलीम ने इस्लामिक दावाह सेंटर (IDC) में धर्मांतरण गतिविधियों में उमर और मुफ्ती काजी की मदद की। ये लोग एक हजार से अधिक लोगों का धर्म परिवर्तन करवा चुके थे। मौलाना कलीम वलीउल्लाह नाम से एक ट्रस्ट भी ऑपरेट करता था, जो दिखावे के तौर पर सामाजिक सद्भाव के नाम पर कार्यक्रम चलाता था। पर हकीकत में इसकी आड़ में धर्मांतरण कराया जाता था। संस्था के बैंक खातों और अन्य माध्यमों से भारी मात्रा में रकम जमा कराई जाती थी। ईडी ने भी एटीएस केस के आधार पर मोहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर कासमी और इस्लामिक दावाह सेंटर के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत मामला दर्ज किया था।
धर्म परिवर्तन रैकेट का मास्टरमाइंड था उमर गौतम
बाटला हाउस जामिया नगर नई दिल्ली निवासी मोहम्मद उमर गौतम मूलत: फतेहपुर का रहने वाला था। पहले इसका नाम श्याम प्रताप सिंह गौतम था पर बिजनौर के नासिर खान से दोस्ती के बाद इसने साल 1984 में इस्लाम धर्म अपना लिया। इसके बाद ये धर्म परिवर्तन के धंधे में उतर गया। इसके एवज में इसे भारी तादाद मे विदेशी फंडिंग मिलती थी। धर्म के इन धंधेबाजों ने नोएडा के डेफ स्कूल मे पढ़ने वाले मूक बधिर बच्चों पर खास तौर से फोकस किया हुआ था। इन्हें प्रलोभन और भय देकर धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता था।
डॉक्टर बनने निकला पर अवैध धर्मांतरण में लिप्त हो गया
जिस मौलाना कलीम सिद्दीकी को उम्रकैद की सजा दी गई है, वह यूपी के मुजफ्फरनगर के फुलत गांव का रहने वाला है। इसने मेरठ कॉलेज से बीएससी किया फिर दिल्ली के एक मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया। पर बीच में ही डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़ दी और इस्लामिक मजहबी गतिविधियों में शामिल होकर बतौर मौलाना दिल्ली के शाहीन बाग में रहने लगा। अपने पैतृक गांव में इसने एक मदरसा बनवाया जिसे बाद में केरल की संस्था को सौंप दिया। ये ग्लोबल पीस फाउंडेशन चलाता था। वहीं से ये मौलाना उमर गौतम के संपर्क में आया। इसे यूपी एटीएस ने 22 सितंबर, 2021 को दिल्ली-देहरादून हाईवे पर दौराला-मटौर के पास से गिरफ्तार किया था। बीच गिरफ्तार किया था।
देश के सौहार्द को तोड़ने के लिए रच रहे थे कुचक्र
इस केस की सुनवाई के दौरान एटीएस की ओर से अदालत में कहा गया कि ये लोग साजिश के तहत धार्मिक उन्माद, दुश्मनी और नफरत फैलाकर देश भर में अवैध धर्मांतरण रैकेट चला रहे थे। इनके अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन भी थे। इसके लिए हवाला के जरिए विदेशों से पैसा भेजा जा रहा था। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों- महिलाओं और विकलांगों को बहकाकर और उन पर दबाव बनाकर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करा रहे थे। धर्म परिवर्तन किए गए लोगों में उनके मूल धर्म के प्रति नफरत का भाव पैदा कर कट्टरपंथी बनाते थे। उन्हें मानसिक तौर पर देश के विभिन्न धार्मिक वर्गों में वैमनस्यता फैलाने के लिए तैयार करके देश के सौहार्द को बिगाड़ने की साजिश में शामिल थे। इनके अंतरराष्ट्रीय संबंध भी थे जिसके जरिए हवाला से इन्हें विदेशों से रकम मिलती थी। उसका इस्तेमाल करके अनुचित दबाव बनाकर बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करा रहे थे।
बहरहाल, अवैध धर्मांतरण के इस मामले में दोषियों पर कानून का शिकंजा कस चुका है। पहली बार एनआईए की विशेष अदालत ने छल व दबाव के जरिए धर्म परिवर्तन के मामले में सजा सुनाई है। उम्मीद की जा रही है कि ये फैसला नजीर के तौर पर कायम होगा जिससे उन तत्वों पर अंकुश लगेगा जो निर्बलों-बच्चों-दिव्यांगों को बहकाकर धर्म बदलवाने की कुत्सित कार्य में लिप्त हैं।