ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे कुशीनगर संसदीय सीट की। गोरखपुर मंडल का जिला है कुशीनगर। इसका जिला मुख्यालय पडरौना में है। पहले ये देवरिया का हिस्सा हुआ करता था। इसके पूर्व में बिहार राज्य है। जबकि दक्षिण-पश्चिम में देवरिया, पश्चिम में गोरखपुर और उत्तर-पश्चिम में महाराजगंज जिला है। इस जिले की छह तहसील हैं--पडरौना, कुशीनगर, हाटा, तमकुहीराज , खड्डा, कप्तानगंज।
बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली प्राचीन काल से रही महत्वपूर्ण
ये पूरा क्षेत्र तथागत गौतम बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली के रूप में वैश्विक मानचित्र पर दर्ज है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार त्रेता युग में ये क्षेत्र भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी हुआ करती थी। जिस वजह से इसे कुशावती के नाम से भी जाना जाता था। इस जिले के मुख्यालय पडरौना के बारे में मान्यता है कि विवाह के उपरांत भगवान राम सीता व अन्य सगे संबंधियों के संग इसी रास्ते से जनकपुर से अयोध्या लौटे थे। उनके पद यहां पड़े इसलिए इसे 'पदरामा' कहा गया जो बाद में अपभ्रंश होते हुए पडरौना हो गया।
बौद्ध धर्म का अति महत्वपूर्ण केंद्र रहा कुशीनगर
पालि साहित्य के ग्रंथ त्रिपिटक के अनुसार बौद्ध काल में यह क्षेत्र 1 6 महाजनपदों में एक था। यह मल्ल शासकों की राजधानी थी। तब इसे 'कुशीनारा' के नाम से जाना जाता था। भगवान बुद्ध ने यहीं अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था। कुशीनगर के फाजिलनगर में 'छठियांव' नामक गांव में किसी ने महात्मा बुद्ध को जहरीला भोजन करा दिया था। जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हुई थी। मृत्यु के पश्चात् तथागत की अंत्येष्टि क्रिया चक्रवर्ती सम्राट के भाँति की गई। बुद्ध के अवशेषों पर एक स्तूप खड़ा किया गया। कसया गांव के इस स्तूप को "परिनिर्वाण चैत्याम्रपट्ट" कहा गया।
मध्यकाल तक अपनी चमक खोने लगा ये क्षेत्र
बाद में इस क्षेत्र को यहां मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त, हर्षवर्धन और पाल राजवंशों का शासन रहा। गुप्त वंश के बाद ये उपेक्षित क्षेत्र हो गया। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने यात्रा वृतांत में यहां का जिक्र किया है। कलचुरी व पाल शासकों ने इस नगर को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया था। 12वीं सदी तक एक जीवंत शहर रहने के बाद कुशीनारा गुमनामी में कहीं खो गया था। आधुनिक कुशीनगर को दुनिया के सामने लाने का श्रेय अलेक्जेंडर कनिंघम को जाता है। जिनके द्वारा 1861 में इस स्थान की खुदाई में छठी शताब्दी की लेटी बुद्ध प्रतिमा के अलावा रामाभार स्तूप और माथा कुंवर मंदिर भी खोजे गए।
कुशीनगर से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण स्थल
फाजिलनगर के पास बुद्ध की खंडित प्रतिमा मिली जिसे 'जोगीर बाबा' कहा गया और इसी के नाम पर इस गांव को जोगिया कहा जाने लगा। यहां प्रतिवर्ष मई माह में `लोकरंग´ महोत्सव आयोजित होता है। कुशीनगर के पास ही मल्लों का गणराज्य पावा था। जहां जैन धर्म का प्रभाव था। 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने पावानगर (वर्तमान का फाजिलनगर) में ही परिनिर्वाण प्राप्त किया था। गुप्त काल के भग्नावशेष, डेढ़ दर्जन प्राचीन टीलों को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया है। उत्तर भारत का इकलौता सूर्य मंदिर तुर्कपट्टी में स्थित है। खुदाई में प्राप्त सूर्य प्रतिमा गुप्तकालीन मानी जाती है।
बौद्ध धर्म अनुयायी राष्ट्रों के पर्यटकों की बड़ी आमद
कुशीनगर के तमाम स्थल बौद्ध धर्म से जुड़े हैं जहां दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं। निर्वाण स्तूप में महात्मा बुद्ध की चिता की राख संजोई गई है। माथा कुंवर मंदिर, हाटा का करमहा मठ अति सिद्ध स्थान माना जाता है। रामाभर स्तूप को मुकुट बंधन चैत्य नाम से संबोधित किया जाता है। मौजूदा दौर में कुशीनगर में म्यांमार बुद्ध विहार,थाईलैंड बुद्ध विहार,कोरिया बुद्ध विहार,चीनी बुद्ध विहार,जापानी बुद्ध विहार,श्री लंका बुद्ध विहार, कंबोडिया बुद्ध विहार, एक्यूप्रेशर परिषद, प्रबुद्ध सोसाइटी, भदंत ज्ञानेश्वर बुद्ध विहार एवं भिक्षु संघ संचालित हैं। यहां चीन द्वारा बनवाए गए चीन मंदिर में महात्मा बुद्ध की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। जापानी मंदिर में अष्टधातु से बनी महात्मा बुद्ध की आकर्षक प्रतिमा है।
कुशीनगर के दर्शनीय स्थल
इंडो-जापान-श्रीलंकन बौद्ध केन्द्र के निकट स्थित बौद्ध संग्रहालय दर्शनीय स्थल है। संसार की विशालतम प्रतिमा- 'मैत्रेय बुद्ध' का निर्माण कुशीनगर में किया जा रहा है। जिसमें सभी बौद्ध राष्ट्रों द्वारा सहयोग किया जा रहा है। पांच सौ फीट ऊंची प्रतिमा की शैली तिब्बती है। यहां के मां भवानी मंदिर में श्रद्धालु बड़ी तादाद में आते हैं। पडरौना का राज दरबार, पनियहवा में गंडक नदी का पुल दर्शनीय स्थल है।
उद्योग धंधे और विकास का पहलू
यहां ढाढ़ा बुजुर्ग में एक आधुनिक गन्ना मिल है। रामकोला और कप्तानगंज की चीनी मिल बंद होने से गन्ना किसानों की मुश्किलें बढ़ी हैं। कुशीनगर में केला फ़ाइबर से विभिन्न उत्पाद तैयार किए जाते हैं ये काम ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडेक्ट)का भी हिस्सा है। केले के पौधे से यहां तमाम उत्पाद तैयार होते हैं। जिनमें मैट, रस्सी, केले से निर्मित चिप्स, केले के तने से बने उत्पाद, चटाइयाँ, बैग बनाए जाते हैं। इन्वेस्टर्स समिट के दौरान यहां 3348.87 करोड़ की लागत से 174 औद्योगिक इकाइयों को लगाए जाने की योजना है। इसके जरिए होटल, स्कूल, अस्पताल, राईसमिल और एथनाल निर्माण के क्षेत्र में निवेश होगा। जिससे यहां विकास को गति मिल सकेगी।
पूर्व में हुआ करती थी पडरौना संसदीय सीट
पहले ये क्षेत्र पडरौना लोकसभा सीट के नाम से जाना जाता था।1957, 1962, 1967 में यहां कांग्रेस के काशीनाथ पांडेय ने जीत की हैट्रिक लगाई। 1971 में कांग्रेस के गेंद सिंह जीते। तो 1977 में जनता पार्टी के राम धारी शास्त्री विजयी हुए। 1980 और 1984 में कांग्रेस के कुंवर चन्द्र प्रताप नारायण सिंह सांसद चुने गए। जबकि 1989 में जनता दल के बालेश्वर यादव जीते।
नब्बे के दशक से बीजेपी की पकड़ हुई मजबूत
राममंदिर आंदोलन के दौर में इस सीट पर बीजेपी ने खाता खोला। 1991 से 1999 तक हुए चार चुनावों में बीजेपी के रामनगीना मिश्र ने लगातार जीत हासिल कर रिकॉर्ड कायम कर दिया। 2004 में बालेश्वर यादव फिर जीते पर इस बार वह राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रत्याशी थे। पडरौना संसदीय सीट का ये अंतिम चुनाव था। साल 2008 के परिसीमन के बाद कुशीनगर सीट अस्तित्व में आई।
कुशीनगर सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस फिर बीजेपी को मिली कामयाबी
कुशीनगर संसदीय सीट पर हुए पहले चुनाव में साल 2009 में कांग्रेस के रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन सिंह) जीते। अब ये बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। 2014 की मोदी लहर में बीजेपी के राजेश पांडे सांसद चुने गए। उन्होंने 85,540 वोटों के मार्जिन से कांग्रेस के आरपीएन सिंह को मात दी। 1,32,881 वोट पाकर बीएसपी के संगम मिश्रा तीसरे पायदान पर रहे। साल 2019 में बीजेपी ने विजय कुमार दुबे को प्रत्याशी बनाया उन्होंने 597,039 वोट पाकर सपा के एनपी कुशवाहा को 3,37,560 वोटों के बड़े मार्जिन से पटखनी दी। कांग्रेस के आरपीएन सिंह 1,46,151 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण
इस संसदीय सीट पर 18, 75,215 वोटर हैं। जिनमे 3.5 लाख मुस्लिम, 2.94 लाख दलित, 2.24 लाख कुशवाहा, 2.23 लाख ब्राह्मण, 1.80 लाख यादव , 1.75 लाख कुर्मी व सैंथवार, 1.04 लाख 1चौहान, 70 हजार राजपूत, 14 हजार भूमिहार बिरादरी के वोटर हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में एनडीए का पलड़ा रहा भारी
इस संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से सभी सीटों पर एनडीए का परचम फहराया था। खड्डा सीट से निषाद पार्टी के विवेक आनंद पांडेय, पडरौना से बीजेपी के मनीष जायसवाल, कुशीनगर से बीजेपी के पंचानंद पाठक, हाटा से बीजेपी के मोहन वर्मा और रामकोला सुरक्षित सीट से बीजेपी के ही विनय प्रकाश गोंड विधायक हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर डटे योद्धा
मौजूदा चुनावी में बीजेपी ने फिर से सिटिंग सांसद विजय कुमार दुबे पर ही भरोसा जताया है। सपा से अजय प्रताप सिंह सैंथवार और बीएसपी से शुभ नारायण चौहान हैं। राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी से स्वामी प्रसाद मौर्य भी चुनाव लड़ रहे हैं।
चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों का ब्यौरा
कभी मायावती के शासन में कद्दावर मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य सपा में आए फिर रामचरित मानस और सनातन धर्म पर विवादित टिप्पणियों में जुट गए। विवाद गहराया तो सपा ने भी किनारा कस लिया। बीजेपी के विजय कुमार दुबे कभी हिंदू युवा वाहिनी के पदाधिकारी हुआ करते थे। साल 2007 में योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी का तीखा विरोध किया तो कई मुकदमे लद गए। हालांकि फिर आरपीएन सिंह से नजदीकियां बढ़ीं तो कांग्रेस का दामन थाम लिया। इनकी पत्नी खड्डा ब्लॉक की प्रमुख का चुनाव जीतीं। 2012 में खुद विजय दुबे कांग्रेस से खड्डा के विधायक बने। पर बाद में राज्य सभा व एमएलसी के चुनावों में बीजेपी का सपोर्ट किया तो कांग्रेस ने निलंबित कर दिया। फिर ये बीजेपी में शामिल हो गए। बड़गांव के बेलवनिया निवासी बीएसपी के शुभ नारायण चौहान सेना की नौकरी से रिटायर होने के बाद 2007 में बीएसपी में शामिल हो गए। 2009-2012 तक बीएसपी के जिला प्रभारी रहे। 2015 में ग्राम प्रधान का चुनाव लड़े पर हार गए। इस बार बीएसपी ने इन्हें निष्ठा का इनाम देते हुए प्रत्याशी बना दिया। वहीं, सपा प्रत्याशी अजय प्रताप देवरिया से दो बार बीजेपी विधायक रहे जनमेजय सिंह के बेटे हैं। जिनका 2020 में निधन हो गया था। इस सीट पर हुए उपचुनाव में टिकट न मिलने पर अजय प्रताप निर्दलीय लड़े पर महज 19282 वोट ही पा सके। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा में शामिल होकर टिकट पा गए पर 66046 वोट पा सके और बीजेपी के शलभ मणि त्रिपाठी से पराजित हो गए। बहरहाल, आर्थिक व औद्योगिक पिछड़ेपन के शिकार कुशीनगर में हो रही चुनावी जंग में जातीय लामबंदी जोरों पर हो रही है। बुद्ध की इस धरती पर चुनावी घमासान चरम पर पहुंच चुका है।