UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में गोरखपुर सीट, नब्बे के दशक से इस सीट पर गोरक्षनाथ पीठ का फहराया परचम
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे गोरखपुर संसदीय सीट की। ये उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से का जिला है। जो गोरखपुर मंडल का हिस्सा है। ये भारत एवं नेपाल की सीमा से नजदीक है। इसकी उत्तरी दिशा में नेपाल देश स्थित है। गोरखपुर की सीमाएं पूर्व में देवरिया एवं कुशीनगर से पश्चिम में संत कबीर नगर से,उत्तर में महराजगंज एवं सिद्धार्थ नगर से तथा दक्षिण में मऊ ,आजमगढ़ तथा अम्बेडकर नगर से जुड़ी हुई हैं। यह उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे पुराने जिलों में से एक है। इस शहर का नाम सिद्ध संत मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य गोरखनाथ के नाम पर रखा गया।
पौराणिक युग से महत्वपूर्ण स्थल रहा गोरखपुर क्षेत्र
प्राचीन काल से ये अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र था। गोरखपुर कोशल राज्य का हिस्सा हुआ करता था, इस क्षेत्र का जुड़ाव तथागत बुद्ध और जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर से भी रहा। यह मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त और हर्षवर्धन के आधिपत्य में रहा। थारू शाक मदन सिंह ने भी यहां के एक हिस्से पर शासन किया। मध्यकाल में ये ऐतिहासिक क्षेत्र कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर तक के अधिकार मे रहा। मुगल शासन के दौरान इसकी प्रशासनिक देखरेख का जिम्मा अवध के नवाबों के पास था। 1801 में अवध के नवाब सआदत अली खान द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी को सहायक संधि के तहत ये क्षेत्र सौंप दिया।
गोरखपुर के अब तक तीन विभाजन हो चुके हैं
प्राचीन गोरखपुर में नेपाल तराई के कुछ हिस्सों के जिले के साथ-साथ बस्ती, देवरिया, महराजगंज और आजमगढ़ शामिल थे। अंग्रेजों ने 1829 में, गोरखपुर नाम का डिवीजन मुख्यालय बनाया गया। जिसमें गोरखपुर, गाजीपुर और आजमगढ़ के जिले शामिल थे। ब्रिटिश राज में सन् 1865 में, गोरखपुर जिले के कुछ हिस्सों को अलग करके बस्ती जिला बनाया गया। आजादी से एक साल पहले साल 1946 में गोरखपुर का विभाजन करके देवरिया जिला अस्तित्व में आया। साल 1989 में गोरखपुर का तीसरी बार विभाजन के द्वारा महाराजगंज जिला बना।
इतिहास मे दर्ज महत्वपूर्ण घटनाएं
4 फरवरी, 1922 को यहीं पर चौरी चौरा कांड हुआ था। साल 1940 में यहीं जवाहर लाल नेहरू का ट्रायल हुआ और उन्हें चार वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। 23 सितंबर, 1942 को सहजनवा के दोहरिया में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने फायरिंग की जिसमें नौ लोग शहीद हुए, सैकड़ों घायल हुए। ये धरा मुंशी प्रेमचंद की कर्मस्थली, फिराक गोरखपुरी, पं रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत स्थली है। गोरखपुर वायु सेना का मुख्यालय भी है जो कोबरा स्क्वाड्रन के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख आस्था केंद्र व पर्यटन स्थल
इस शहर की खास पहचान है गोरखनाथ मंदिर और गीता प्रेस की वजह से। सनातन धर्म से जुड़ी धार्मिक पुस्तकों को बेहद सस्ते दामों में उपलब्ध कराता रहा है गीता प्रेस। जिसकी ‘कल्याण’ पत्रिका अति लोकप्रिय रही है। गुरु गोरखनाथ के समाधि स्थल पर बने गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर लाखों भक्त पहुंचते हैं। सीएम योगी इसी मठ के मुख्य अधिष्ठाता हैं। इसी जिले में स्थित कुसम्ही वन में अति प्रसिद्ध बुढ़िया माई मंदिर है। जहां एक छोटा चिड़ियाघर भी है। गोरखपुर शहर में 1700 एकड़ क्षेत्र में फैले रामगढ़ ताल को रामग्राम के नाम से भी जाना जाता है। यहां से राप्ती नदी गुजरती है। वर्तमान में यह जगह पूर्वांचल का मरीन ड्राइव बन चुकी है। यहां लाइट एंड साउंड, नौका विहार और वाटर स्पोर्ट्स की व्यवस्था है। नक्षत्र विज्ञान के शौकीन यहां के तारामंडल में जाना पसंद करते हैं। रामगढ़ ताल क्षेत्र में राजकीय बौद्ध संग्रहालय प्रसिद्ध है। इसके साथ ही यहां का विष्णु मंदिर, गीता वाटिका, इमामबाड़ा, चौरी चौरा शहीद स्मारक पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं।
उद्योग धंधे और विकास का आयाम
इस क्षेत्र में टेराकोटा शिल्प का काम प्रचलित रहा है। चीनी मिट्टी की इस कारीगरी के जरिए मूर्ति, बर्तनों (विशेष रूप से फूलदान), जल पाइप, छत की टाइल्स, ईंटों और सतही सजावट का काम किया जाता है। ये काम यहां के ओडीओपी मे भी शामिल है। यहां लगभग 200 परिवार इस कार्य से जुड़े हुए हैं। सीएम योगी बनने के बाद इस क्षेत्र मे विकास ने गति हासिल की है। यहां एम्स निर्माण से लेकर फर्टिलाइजर कारखाने की शुरुआत हुई, इन्सेफेलाइटिस के कहर से इस क्षेत्र को अरसे बाद निजात मिली।
निवेश के जरिए विकास को रफ्तार मिलने की आस
बीते साल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान कुल 492 कंपनियां गोरखपुर में निवेश के लिए आगे आईं थीं। इनमें 1100 करोड़ का निवेश अकेले वरुण बेवरेज ने पेप्सिको कंपनी ने किया है। जल्द ही इस क्षेत्र में 281 फैक्ट्रियां स्थापित होंगी। यहां तत्वा प्लास्टिक, केयान डिस्टलरी, एसडी इंटरनेशनल समेत 10 से अधिक कंपनियों से 250 करोड़ से अधिक का निवेश किया है। इस निवेश से यहां रोजगार के अवसर सृजित होंगे साथ ही औद्योगिक विकास की गति तेज हो सकेगी।
चुनावी इतिहास के आईने में गोरखपुर सीट
पहली बार इस सीट पर 1952 के चुनाव में कांग्रेस के सिंहासन सिंह जीते थे।1957 में कांग्रेस के महादेव प्रसाद जीते। 1962 में फिर कांग्रेस से सिंहासन सिंह सांसद बने। 1967 में महंत दिग्विजयनाथ यहां से निर्दलीय चुनाव जीते। 1970 के उपचुनाव में महंत अवेद्यनाथ इस सीट से निर्दलीय सांसद चुने गए। 1971 में कांग्रेस के नरसिंह नारायण पांडेय चुनाव जीते। तो 1977 में जनता पार्टी के हरिकेश बहादुर को जनता ने चुना।1980 में हरिकेश बहादुर कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और जीते। 1984 में कांग्रेस के मदन पांडेय यहां से सांसद बने।
नब्बे के दशक से इस सीट पर गोरक्षनाथ पीठ का परचम फहराया
साल 1989 में महंत अवेद्यनाथ हिंदू महासभा के टिकट पर यहां से दोबारा चुनाव जीते। 1991 और 1996 में अवेद्यनाथ ने बतौर बीजपी प्रत्याशी जीत दर्ज की। इसके बाद साल 1998 में इस सीट पर योगी आदित्यनाथ की एंट्री हुई। 1998 से लेकर 2014 तक लगातार पांच चुनाव इस सीट पर जीते। वो महंत अवेद्यनाथ के दूसरे सांसद बने थे, जिन्होंने गोरखपुर सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई थी। 2014 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने 3,12,783 वोटों के मार्जिन से जीत दर्ज की थी, पर साल 2017 में यूपी का मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने ये सीट छोड़ दी थी।
उपचुनाव में बीजेपी ने सही हार फिर वापस हासिल की सीट
तब यहां 2018 में हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद ने बीजेपी से ये सीट छीन ली, कांटेदार मुकाबले में प्रवीण कुमार निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र दत्त शुक्ला को 21,801 वोटों से हरा दिया था। हालांकि 2019 के चुनाव में फिर से बीजेपी ने इस सीट पर वापसी की। भोजपुरी फिल्म स्टार रवि किशन शुक्ला यहां से सांसद चुने गए। 717,122 वोट हासिल करके रवि किशन ने सपा के राम निषाद को 3,01,664 वोटों के मार्जिन से हरा दिया।
वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना
इस संसदीय सीट पर 20,74,803 वोटर हैं। यहां सर्वाधिक 4.5 लाख आबादी निषाद वोटरों की है। 2.25 हजार यादव, 1.5 लाख मुस्लिम हैं। 2 लाख के करीब दलित वोटर भी हैं। 3 लाख से अधिक ब्राह्मण और राजपूत हैं। एक लाख के करीब भूमिहार और वैश्य बिरादरी भी है। हालांकि इस क्षेत्र में जातीय समीकरणों पर गोरखनाथ मठ का प्रभाव भारी पड़ता है।
बीते विधानसभा चुनाव में यहां की सभी सीटों पर बीजेपी का क्लीन स्वीप
गोरखपुर संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। साल 2022 के चुनाव में यहां योगी फैक्टर ने इस कदर असर डाला कि यहां की सभी सीटों पर बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया। कैंपियरगंज से बीजेपी के फतेह बहादुर सिंह, पिपराइच से महेंद्र पाल सिंह, गोरखपुर सदर से सीएम योगी आदित्यनाथ, गोरखपुर ग्रामीण से बिपिन सिंह, सहजनवा से प्रदीप शुक्ला विधायक हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर डटे योद्धा
इस सीट से कुल 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी से सिटिंग सांसद रवि किशन हैं। सपा गठबंधन से काजल निषाद है जबकि बीएसपी से जावेद सिमनानी हैं। भोजपुरी फिल्मों के स्टार रवि किशन बॉलीवुड और टॉलीवुड फिल्मी जगत के भी जाने माने चेहरा हैं, पहले कांग्रेस मे थे साल 2014 का चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर लड़े पर हार गए। साल 2017 में बीजेपी से जुड़े और 2019 में सांसद बन गए। तो सपा की काजल निषाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बतौर कांग्रेस प्रत्याशी और 2022 में सपा के टिकट से कैंपियरगंज से चुनाव लड़ चुकी है, पर हार गईं। गोरखपुर मेयर का चुनाव भी सपा प्रत्याशी के तौर पर लड़ीं पर हार का सामना करना पड़ा। खुद को गोरखपुर की बहू बताकर भावनात्मक दांव भी चला है। निषाद वोटरों के सहारे चुनावी चुनौती पेश करने में जुटी हैं। वहीं, गोरखपुर के नखास चौक के जावेद सिमनानी प्रिंटिग के कारोबार से जुड़े हैं। केजीएन (ख्वाजा गरीब नवाज) नाम से प्रिंटिंग प्रेस है। ढाई दशकों से बीएसपी से जुड़े हैं, कई पदों पर रह चुके हैं। पार्षद का चुनाव लड़े पर हार गए। इनके पिता और भाई भी बीएसपी से जुड़े हुए हैं। बहरहाल, भगवा गढ़ में हो रहा चुनावी संग्राम दिलचस्प हो गया है। दो दो फिल्मी सितारे चुनावी मैदान में हैं। योगी के इस अभेद्य दुर्ग में मुकाबला बीजेपी और सपा प्रत्याशी के बीच ही सिमटा दिख रहा है।