Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: इतिहास के आईने में चंदौली सीट, नब्बे के दशक से इस क्षेत्र में कांग्रेस हुई कमजोर

Reported by: PTC News Himachal Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 30th 2024 02:01 PM  |  Updated: May 30th 2024 02:01 PM

UP Lok Sabha Election 2024: इतिहास के आईने में चंदौली सीट, नब्बे के दशक से इस क्षेत्र में कांग्रेस हुई कमजोर

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे चंदौली संसदीय सीट की। ये गंगा नदी के पूर्व और दक्षिण की ओर स्थित है। ये जिला पूर्व व दक्षिण पूर्व की ओर से  बिहार राज्य से जुड़ा हुआ है जबकि उत्तर-पूर्व में गाजीपुर, दक्षिण में सोनभद्र एवं दक्षिण-पश्चिम में मिर्जापुर जिले से इसकी सीमाएं घिरी हुई हैं। कर्मनाशा नदी चंदौली और बिहार के बीच की  विभाजक रेखा है। गंगा, कर्मनाशा और चन्द्रप्रभा नदियाँ यहां से प्रवाहित होती हैं।

नए जिले के तौर पर 27 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया चंदौली

चंदौली वाराणसी मंडल का हिस्सा है। इसका नाम तहसील मुख्यालय के नाम पर रखा गया है। चंदौली को चावल का कटोरा भी कहा जाता है। साल 1997 में ये वाराणसी से अलग होकर नए जिले के तौर पर अस्तित्व में आया। इसकी चार तहसीलें हैं--सैयद राजा, चकिया, सकलडीहा और पं दीनदयाल नगर (मुगलसराय)। यहां का मुगलसराय यानि पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर भारतीय रेलवे का महत्वपूर्ण केन्द्र और एशिया का सबसे बड़ा रेलवे मार्शलिंग यार्ड है। इसे रेलवे का उत्तर पूर्व भारत का द्वार कहा जाता है। कभी चंदौली नक्सल प्रभावित इलाका हुआ करता था. आज से बीस साल पहले 20 नवंबर, 2004 को यहां के नौगढ़  के हिनौत घाट के पास नक्सलियों ने लैंडमाइन के जरिए विस्फोट करके पीएसी के ट्रक को उड़ा दिया था जिसमें पन्द्रह जवानों की मौत हो गई थी।

इतिहास  के आईने में चंदौली क्षेत्र

चंदौली क्षेत्र प्राचीन काल में काशी राज्य के आधिपत्य में हुआ करता था। यहां पुरातात्विक महत्व की कई वस्तुएं, ईंटें व सिक्के बहुतायत में बिखरे हुए हैं। यहां की सकलडीहा तहसील में बलुआ नामक प्राचीन क्षेत्र है। यहां हर साल माघ महीने में पश्चिमी वाहिनी मेला लगता है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा पूरे देश  सिर्फ दो ही जगहों पर पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं एक प्रयागराज में और दूसरा बलुआ में। सकलडीहा के रामगढ़ गांव में संत कीनाराम की जन्मभूमि है। जो वैष्णव धर्म के उपासक थे, शिव व शक्ति में दृढ़ आस्था रखते थे अत्यंत सिद्ध औघड़ संत थे। सकलडीहा में ही हेतमपुर किले के अवशेष मौजूद हैं। जो शेरशाह सूरी के समय का है। यहां मौजूद पांच कोट, भुलैनी कोट, भितरी कोट, बिचली कोट, उत्तरी कोट और दक्षिणी कोट, अति प्रसिद्ध हैं। ये किला पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है। 

प्रमुख धार्मिक स्थल व आस्था केंद्र

चंदौली क्षेत्र में रेहड़ा भगवती देवी मंदिर, महाकाली मंदिर, कांवर का महडौरा देवी मंदिर, महाराई का आनंदेश्वर मंदिर, दोदौली का दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर, कीनाराम आश्रम, संत डंगरिया आश्रम और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट का कालेश्वर मंदिर आस्था के बड़े केंद्र हैं। लतीफ शाह बाबा दरगाह पर लोग बड़ी तादाद में पहंचते हैं।

चंदौली क्षेत्र में प्रमुख पर्यटन के स्थल

चंदौली में चन्द्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य और देवदारी व राजदारी के जलप्रपात पर्यटकों को बड़ी तादाद में आकर्षित करते हैं। पर्यटन विभाग द्वारा हेतमपुर किले को संवारा जा रहा है। यहां की दिग्गज हस्तियों की चर्चा करें तो पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, कमलापति त्रिपाठी, जाने माने आलोचक नामवर सिंह, लेखक अखंडानंद सरस्वती, साहित्य जगत के सितारे काशीनाथ सिंह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सरीखी हस्तियों का जन्म यहीं हुआ।

उद्योग धंधे और विकास का आयाम

ये क्षेत्र साड़ियों पर ज़री के काम के लिए मशहूर रहा है। गोपालापुर, दुल्हीपुर, सतपोखरी , सिंकंदरपुर और केस्तर में जरी के कारीगर बड़ी तादाद में हैं। इनमे से अधिकतर कारीगर वाराणसी की यूनिट्स में काम करते हैं। इन्वेस्टर्स समिट के दौरान तय हुआ है कि 57 निवेशक यहां 23,457.7 करोड़ का निवेश करेंगे। जिससे 30 हजार से अधिक रोजगार सृजित होंगे। अतिरिक्त उर्जा स्रोतों में भारी भरकम निवेश हुआ है। यहां सॉलिड प्लाई प्रा. लि. इंटीग्रेटेड टाउनशिप, मॉल का  निर्माण कराएगी। उम्मीद है कि इससे यहां के विकास को नया आयाम हासिल हो  सकेगा। 

चुनावी इतिहास के आईने में चंदौली सीट

इस संसदीय सीट से 1952 व 1957 में कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह चुनाव जीतकर पहले सांसद बने थे..तब उन्होंने जाने माने समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया को चुनाव हराया था। 1962 में कांग्रेस के बालकृष्ण सिंह जीते। तो 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के निहाल सिंह को जीत का मौका मिला। 1971 में कांग्रेस के सुधाकर पांडेय सांसद चुने गए। 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी के नरसिंह यादव को जनता ने सांसद चुना। 1980 में जनता पार्टी के ही निहाल सिंह जीते। तो 1984 में फिर से यहां से कांग्रेस को जीत मिली उसके प्रत्याशी के तौर पर चंद्रा त्रिपाठी को जीत मिली।

नब्बे के दशक से इस क्षेत्र में कांग्रेस हुई कमजोर

साल 1989 में चंदौली से जनता दल से कैलाश नाथ सिंह जीते तो 1991,1996 और 1998 में लगातार तीन बार चुनाव जीतकर बीजेपी के आनंद रत्न मौर्या ने जीत की हैट्रिक लगा दी। पर 1999 में सपा के जवाहरलाल जायसवाल  यहां बीजेपी को हराकर सांसद बने। साल  2004 में कैलाश नाथ यादव फिर  चुनाव जीते पर इस बार ये बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे। 2009 में जीत की बाजी लगी रामकिशुन यादव के हाथ। जो सपा के टिकट से सांसद बने।

बीते दो आम चुनावों में बीजेपी को मिली जीत

साल 2014 की मोदी लहर में यहां डा. महेन्द्र नाथ पांडेय ने बतौर बीजेपी उम्मीदवार जीत दर्ज की। उन्होंने बीएसपी के अनिल कुमार मौर्य को 1,56,756 वोटों के मार्जिन से परास्त कर दिया। साल 2019 में दूसरी बार फिर बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की डॉ महेन्द्र नाथ पांडेय ने। उन्होंने 510,733 वोट हासिल कर सपा-बीएसपी गठबंधन से सपा के संजय सिंह चौहान को कांटेदार मुकाबले में 13,959 वोटों से शिकस्त दी। संजय चौहान ने 4,96,774 वोट पाए थे।

वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण

इस सीट पर 19, 31,447 वोटर हैं। जिनमें  2.75 लाख यादव, 2.25 लाख दलित हैं तो 2.05 लाख कुर्मी भी हैं। इनके अलावा 1.75 लाख मुस्लिम, 1.50 लाख राजभर, 1.15 लाख ब्राह्मण, 1 लाख क्षत्रिय बिरादरी के वोटर भी हैं। साथ ही मौर्य-कुशवाहा-जायसवाल-पाल-बिंद सहित अन्य ओबीसी जातियां 2.50 लाख के करीब हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी का पलड़ा  रहा भारी

चंदौली संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं शामिल हैं। जिनमें वाराणसी की अजगरा सुरक्षित और शिवपुर सीट हैं। जबकि चंदौली की सैयदराजा, मुगलसराय और सकलडीहा सीटें हैं। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां एक सीट सपा को मिली जबकि चार पर बीजेपी ने जीत दर्ज की। सकलडीहा से सपा के प्रभु नारायण यादव चुनाव जीते जबकि मुगलसराय से बीजेपी के रमेश जायसवाल, सैयदराजा से बीजेपी के सुशील सिंह, अजगरा से बीजेपी के त्रिभुवन राम और शिवपुर से बीजेपी के अनिल राजभर विधायक हैं।अनिल राजभर योगी सरकार में मंत्री भी हैं।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर डटे हैं योद्धा

मौजूदा चुनावी जंग में फिर से बीजेपी ने सिटिंग सांसद डॉ महेंद्र नाथ पांडेय पर ही दांव लगाया है। सपा से वीरेंद्र सिंह और बीएसपी से सत्येन्द्र मौर्य हैं। जीत की हैट्रिक लगाने को पसीना बहा रहे डा. महेन्द्र नाथ पांडेय मोदी सरकार में भारी उद्योग मंत्री हैं। यूपी बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं। यूपी की बीजेपी सरकारों में भी मंत्री रह चुके हैं। सपा के वीरेन्द्र सिंह 1996 में कांग्रेस के टिकट से चिरईगांव सीट से विधायक बने थे। 2003 में इसी सीट पर हुए उपचुनाव में बीएसपी से जीत दर्ज की। बाद में सपा में चले गए फिर दिग्विजय सिंह के कहने पर कांग्रेस में आ गए। पर 2017 में बीएसपी का दामन थाम लिया फिर सपा में आ गए। नगर निकाय चुनाव से पहले सपा ने इन्हें राष्ट्रीय  प्रवक्ता भी नियुक्त किया था। वहीं, बीएसपी के सत्येन्द्र मौर्य हाल में तब चर्चा में आए थे जब वह नामांकन करने पिस्टल लगाकर गए थे। अजगरा के गोसाईगंज निवासी सत्येन्द्र मौर्य साल 1995 से बीएसपी से जुड़े हुए हैं। 2007 में वह बीएसपी के कुशवाहा भाईचारा कमेटी के वाराणसी के जिलाध्यक्ष रहे। फिलहाल, इस सीट पर चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है। 

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