UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में बांसगांव सीट, लगातार तीन आम चुनावों में बीजेपी का वर्चस्व रहा कायम
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे बांसगांव संसदीय की। दरअसल, गोरखपुर जिले के अंतर्गत दो लोकसभा सीटें हैं एक गोरखपुर संसदीय सीट और दूसरी बांसगांव संसदीय सीट। बांसगांव अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है। बांसगांव गोरखपुर का दक्षिणांचल है। इसे गोरखपुर की तीन विधानसभा सीटों चौरी-चौरा, बांसगांव और चिल्लूपार के साथ ही देवरिया की रुद्रपुर और बरहज विधानसभा सीटों को मिला कर बनाया गया है। प्रशासनिक तौर से बांसगांव गोरखपुर की तहसील है।
इस संसदीय क्षेत्र से जुड़ी अनूठी परंपराएं व आस्था केंद्र
एक दौर में इस क्षेत्र में श्रीनेत राजपूतों का शासन हुआ करता था। इस वंश के लोगों में आज भी परंपरा है अपनी कुलदेवी के प्राचीन मंदिर में अश्विन माह में बलि चढ़ाने की। यहां के डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह की दास्तान खासी मशहूर रही है। वे नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडिया स्थापित कर अपनी इष्ट तरकुलहा देवी की आराधना करते थे। गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे बंधु सिंह। कहा जाता है कि जब भी कोई अंग्रेज उस क्षेत्र से गुजरता था तो बंधू सिंह उसको मार कर उसका सिर काटकर देवी के चरणों में समर्पित कर देते थे। आज भी यहां के मंदिर में प्रसाद के रुप मे मिट्टी के बर्तन में पके मटन को बांटने की परंपरा है।इस क्षेत्र के प्रमुख आस्था केंद्रों की बात करें तो चौरीचौरा में बंजारी देवी का ऐतिहासिक मंदिर अति प्रसिद्ध है। बरहज में सरयू नदी के किनारे पौराणिक देई माता का मंदिर, सोना मंदिर, कुलदेवी मंदिर आस्था के बड़े केंद्र हैं।
चौरी चौरा कांड की वजह से इस क्षेत्र की है विशिष्ट पहचान
4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में गोरखपुर के चौरी चौरा में असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारी एकत्रित हुए थे। पुलिस द्वारा ज्यादती किए जाने पर आंदोलनकारी भड़क गए और इन्होंने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी जिसमें 22 पुलिस वाले मारे गए थे। चूंकि महात्मा गांधी हिंसा के घोर विरोधी थे लिहाजा उन्होंने असहयोग आंदोलन खत्म करने का ऐलान कर दिया। हालांकि इससे कई देशभक्त खासे नाराज हो गए जिसका परिणाम क्रांतिकारी गतिविधियों में इजाफे के तौर पर हुआ।
उद्योग धंधे और विकास का पहलू
गोरखपुर से जुड़ा ये लोकसभा क्षेत्र विकास के पैमाने पर अति पिछड़ा हुआ इलाका है। बांसगांव के बरहज में तिजोरी उद्योग अति प्रसिद्ध रहा है। तिजोरी निर्माण में यहां एक विशेष केमिकल का लेप इस्तेमाल किया जाता है। जिसके चलते यहां की बनी तिजोरी कटर से भी नहीं कटती है। इसमें लगने वाला लॉक भी उच्च गुणवत्ता का होता है। जिसे खोल पाना नामुमकिन माना जाता है। एक दशक पूर्व यहां तिजोरी बनाने के आधा दर्जन कारखाने चलते थे लेकिन खांडसारी, शीरा, लौह, ब्रास उद्योग की तरह तिजोरी उद्योग भी पराभव के कगार पर पहुंच गया। आज इस क्षेत्र में महज एक कारखाना ही संचालित है।
कभी जल परिवहन के जरिए होता था बड़ा कारोबार
एक वक्त में यहां का बरहज बड़ा व्यावसायिक केंद्र हुआ करता था। घाघरा के बरहज तट पर कोलकाता से कारोबार होता था। मदनपुर में गोर्रा और राप्ती के संगम स्थल पर मालवाहक जहाज उतरा करते थे। यहां पानी के छोटे जहाज व स्टीमर से चावल, गेंहूं और कपड़े लाद कर लाए जाते थे। पर बदलते वक्त के साथ ये क्षेत्र कारोबारी गतिविधियों में पिछड़ता चला गया। कुछ दशक पहले धुरियापार में लगी चीनी मिल, गन्ना की पर्याप्त सप्लाई न होने से एक सत्र भी नहीं चल पाई थी।
नए निवेश व योजनाओं से विकास की तमाम उम्मीदें
धुरियापार में केंद्र सरकार की पहल से इंडियन ऑयल के सीबीजी (कंप्रेस्ड बायोगैस) प्लांट का संचालन होने लगा है। इस प्लांट का निर्माण यहां बंद चीनी मिल परिसर के 18 एकड़ भूमि पर 165 करोड़ रुपये के पूंजी निवेश से किया गया है। सीएम योगी ने हाल ही में ऐलान किया है कि गीडा की तर्ज पर धुरियापार में भी नया औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाएगा, जिसके बाद पूरी दुनिया यहां नौकरी मांगने आएगी। सड़क से लेकर रेल मार्ग तक के क्षेत्र में कई काम हुए हैं हालांकि इस अति पिछड़े इलाके में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है।
चुनावी इतिहास के आईने में बांसगांव सीट
इस लोकसभा सीट पर 1957 और 1962 के चुनाव में कांग्रेस के महादेव प्रसाद ने जीत दर्ज की। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के मोहलू प्रसाद जीते। 1971 में कांग्रेस के राम सूरत प्रसाद को कामयाबी मिली। 1977 में जनता पार्टी के विशारद फिरंगी प्रसाद सांसद चुने गए। फिर 1980,1984 और 1989 में जीत की हैट्रिक लगाई कांग्रेस के महावीर प्रसाद ने। 1991 में बीजेपी का खाता खुला राज नारायण पासी जीत के साथ। 1996 में सपा प्रत्याशी के तौर पर सुभावती पासवान चुनाव जीती। जो बम धमाके में अपने पति ओमप्रकाश पासवान की मौत से उपजी सहानुभूति लहर के जरिए कामयाब हुईं। 1998 और 1999 में बीजेपी के राज नारायण पासी ने यहां फिर जीत हासिल की। तो 2004 में कांग्रेस पार्टी के महावीर प्रसाद ने इस सीट से चौथी जीत दर्ज की।
लगातार तीन आम चुनावों में बीजेपी का वर्चस्व कायम
2009 से इस सीट पर सुभावती पासवान के बेटे कमलेश पासवान बतौर बीजेपी प्रत्याशी लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं। 2009 में उन्होंने श्रीनाथ जी, शारदा देवी और पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद सरीखे दिग्गजों को हराया। 2014 में कमलेश पासवान ने बीएसपी के सदल प्रसाद को 1,89,516 वोटों के मार्जिन से हराया। 2019 में बीजेपी को फिर जीत मिली। तब 546,673 वोट पाकर कमलेश पासवान ने बीएसपी के सदल प्रसाद को 1,53,468 वोटों से परास्त कर दिया। सदल प्रसाद को 3,93,205 वोट मिले थे।
वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण
बांसगांव संसदीय सीट पर कुल 18,20,854 वोटर हैं। जिनमे सबसे अधिक अनुसूचित जाति के वोटर हैं। इस सीट पर पासी समुदाय सहित अन्य दलितों की संख्या 4 लाख से ज्यादा है। ब्राह्मण और राजपूत मिलाकर 3 लाख हैं। तो यादव बिरादरी के वोटर 2.5 लाख हैं। 1.50 लाख मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा निषाद, कश्यप, कुर्मी और अन्य ओबीसी जातियां भी प्रभावी तादाद में हैं।
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का परचम फहराया
इस संसदीय सीट के तहत गोरखपुर का चौरी-चौरा, बांसगांव सुरक्षित और चिल्लूपार जबकि देवरिया का रुद्रपुर और बरहज सीटे शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था। चौरी चौरा से श्रवण निषाद, बांसगांव से विमलेश पासवान, चिल्लूपार से राजेश त्रिपाठी, रुद्रपुर से जय प्रकाश निषाद और बरहज से दीपक मिश्रा विधायक हैं।
साल 2024 की चुनावी जंग में संघर्षरत योद्धा
मौजूदा चुनावी जंग के लिए बीजेपी ने सिटिंग सांसद कमलेश पासवान पर ही दांव लगाया है। तो सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर से कांग्रेस के प्रत्याशी सदल प्रसाद हैं। बीएसपी से डा. रामसमुझ ताल ठोक रहे हैं। डा सदल प्रसाद वर्ष 2004, वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे। गोपलापुर निवासी डा. रामसमुझ पूर्व इनकम टैक्स कमिश्नर रहे हैं। 2008 में वीआरएस लेकर बीजेपी ज्वाइन की थी पर 2009 में टिकट नहीं मिला। नाराज होकर बीएसपी चले गए 2012में खजनी से बीएसपी टिकट से चुनाव लड़े पर हार गए। 2019 में फिर बीजेपी आ गए पर हाल ही में मायावती से मुलाकात की और टिकट पाने का भरोसा मिलते ही बीएसपी में शामिल हो गए।
नतीजे कुछ भी हों पर इस सीट पर बनेगा रिकार्ड
इस सीट का चुनावी परिणाम जो भी होगा पर रिकार्ड जरूर बनाएगें। क्योंकि कमलेश पासवान जीते तो लगातार चार बार सांसद चुने जाने का रिकार्ड बनाएंगे। सदल प्रसाद जीते तो तीन बार रनर रहने के बाद पहली बार जीत दर्ज करने वाले प्रत्याशी बन जाएंगे। डा. रामसमुझ जीते तो गोरखपुर व बस्ती मंडल की एकमात्र सुरक्षित सीट पर बीएसपी का खाता खोलने का श्रेय उन्हें जाएगा।
बहरहाल, सीएम योगी की कर्मभूमि गोरखपुर की इस सुरक्षित संसदीय सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रत्याशियों ने जमकर मशक्कत की है। यहां बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशी के दरमियान कड़ी टक्कर नजर आ रही है।