ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor: UP: आज से तकरीबन चौदह वर्ष पूर्व 27 अक्टूबर, 2010 को राजधानी लखनऊ के विकासनगर के सेक्टर-14 में मॉर्निंग वॉक पर निकले सीएमओ डॉ विनोद आर्या को ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर मौत के घाट उतार दिया गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उन्हें पांच गोलियां मारे जाने की पुष्टि हुई थी। अभी ये मामला गरमाया हुआ ही था कि 2 अप्रैल, 2011 को विनोद आर्या के बाद सीएमओ बनाए गए डॉ ब्रह्म प्रसाद सिंह उर्फ बीपी सिंह को भी उसी अंदाज में गोलियों से भून दिया गया। उन्होंने मौके पर ही दम तोड़ दिया। एक के बाद एक लगातार दो सीएमओ की हत्या से राजधानी दहल गई। इन मामलों ने तत्कालीन मायावती सरकार की जमकर फजीहत करा दी। सरकार पर विपक्ष ने तीखे हमले शुरू कर दिए।
चहुँ तरफा दबाव के बाद सीबीआई जांच कराने को तैयार हुई माया सरकार
तत्कालीन मायावती सरकार ने इन दोनों हत्याओं की जांच सीबीआई से कराने का फैसला लिया। खासी आलोचना के चलते दबाव में आने के बाद यूपी के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्र और परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को मंत्री पद से बेदखल कर दिया गया। सीबीआई जांच दो दो मेडिकल ऑफिसर की हत्या की जांच कर रही थी पर ज्यों ज्यों जांच आगे बढ़ी जांच कर रहे अफसरों के होश उड़ गए क्योंकि इन हत्याओं के पीछे छिपा था स्वास्थ्य महकमे का एक महाघोटाला, जिसे रसूखदार नेताओं-अफसरों-दलालों व ठेकेदारों ने मिलकर अंजाम दिया था।
मंत्री-अफसर से लेकर कई डॉक्टर हुए गिरफ्तार
सीबीआई की आंच यूपी के 75 जिलों में तैनात रहे मुख्य चिकित्सा अधिकारियों से लेकर ऊपर तक पहुंचने लगी। जांच के दौरान लखनऊ में तैनात रहे सीएमओ डा. एके शुक्ला की गिरफ्तारी की गई। परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, आईएएस अफसर प्रदीप शुक्ला भी गिरफ्तार हुए। डॉ विनोद आर्य और डॉ बीपी सिंह हत्याकांड के आरोप में डिप्टी सीएमओ डॉ ए के सचान भी गिरफ्तार किए गए। बाद में डॉ सचान की भी संदिग्ध परिस्थितियों में जेल में मौत हो गई। मामले की हुई सीबीआई जांच में इसे खुदकुशी बताया गया। पर अदालत ने इस दलील को खारिज करते हुए इस डॉ सचान की मौत को हत्या और साजिश करार दिया।
सीबीआई चार्जशीट में चार शूटर्स को आरोपी बनाया
सीबीआई ने डॉ. आर्या हत्याकांड में 62 और डॉ. बीपी सिंह में 50 गवाह बनाए। डॉ. आर्या हत्याकांड में सीबीआई की चार्जशीट में आनंद प्रकाश तिवारी, रामकृष्ण वर्मा, विनोद शर्मा, डिप्टी सीएमओ योगेंद्र सिंह सचान एवं विजय दुबे का नाम शामिल किया गया था। जिसमें आनंद प्रकाश तिवारी, रामकृष्ण वर्मा एवं विनोद शर्मा के विरुद्ध हत्या, हत्या का षड्यंत्र व आर्म्स एक्ट के तहत आरोप लगाए गए। हत्यारोपी विजय दुबे के विरुद्ध कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिलने की बात केंद्रीय जांच एजेंसी ने की। सीबीआई ने 2022 में आरोपपत्र अदालत में दाखिल किया था।
कई गवाह मुकरे, दो शूटर बरी, एक दोषी करार
सीएमओ हत्याकांड से जुड़ा शूटर अंशु दीक्षित पेशी के दौरान फरार हो गया था हालांकि बाद में पकड़ा गया और जेल में हुए शूटआऊट में मारा गया। शूटर आनंद प्रकाश तिवारी के पास से बरामद हत्या में प्रयुक्त पिस्टल की विधि विज्ञान प्रयोगशाला में बैलेस्टिक जांच कराई गई थी। जिसमें ये सिद्ध हो गया कि वारदात के स्थल पर मिले 7.62 बोर के खोखे आनंद प्रकाश तिवारी के पास से मिली पिस्टल के ही थे। पर्याप्त वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर उसे दोषी करार दिया गया। हालांकि इस कांड में गवाह बनाए गए कई लोग मुकर गए। जिसका फायदा आरोपियों को हुआ। अदालत ने शूटर रामकृष्ण वर्मा और विनोद शर्मा को दोषमुक्त कर दिया गया।
अदालती फैसले के बाद सीबीआई की तफ्तीश पर उठ रहे हैं गंभीर सवाल
यूपी में स्वास्थ्य महकमे में हुए महाघोटाले के चलते तीन स्वास्थ्य अधिकारियों की हत्या हो गई। मंत्री-अफसर-डॉक्टर-ठेकेदार गिरफ्तार भी हुए पर अंत में महज एक शूटर को ही सीबीआई अदालत में कसूरवार ठहरा सकी। दो पर्याप्त सबूत को अभाव में बरी हो गए। सवाल उठते हैं कि पकड़े गए कुख्यात शूटरों के खिलाफ अदालत में प्रभावी पैरवी क्यों नहीं हो सकी? क्या शूटर्स ने सिर्फ अपनी मर्जी से ही इन हाई प्रोफाइल हत्याओं को अंजाम दे दिया? हत्याओं की सुपारी इन्हें किन किन सफेदपोशों ने दी थी? क्या अब कभी उनके चेहरे बेनकाब हो सकेंगे? या फिर मान लिया जाए कि तमाम हाई प्रोफाइल मामलों के मानिंद यूपी की सियासत को दहला देने वाले इन मामलों में भी हकीकत लचर तफ्तीश व कानूनी दांवपेंचों की पेचीदगी में गुम होकर दम तोड़ चुकी है?