Saturday 23rd of November 2024

काशी से पीएम मोदी ने लगाई हैट्रिक, लेकिन घटा जीत का मार्जिन, जानिए वजह

Reported by: PTC News Himachal Desk  |  Edited by: Deepak Kumar  |  June 07th 2024 11:41 AM  |  Updated: June 07th 2024 12:22 PM

काशी से पीएम मोदी ने लगाई हैट्रिक, लेकिन घटा जीत का मार्जिन, जानिए वजह

Gyanendra Shukla, Editor, UP: लोकसभा चुनाव-2024 के आगाज के साथ ही बीजेपी ने जहां देश भर में चार सौ पार का नारा बुलंद किया तो पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी जीत के मार्जिन का लक्ष्य पांच लाख पार तय किया गया। लेकिन चुनावी नतीजों ने इस लक्ष्य को बेदम कर दिया। जाहिर है इस कमी ने वाराणसी में पीएम के चुनावी प्रबंधन को संभाल रही टीम और पार्टी संगठन की रीति नीति-कार्यशैली को सवालों के कटघरे में ला दिया है।

वाराणसी में चुनाव प्रचार में बीजेपी ने झोंक दी थी पूरी ताकत

इस प्रतिष्ठित सीट पर हो रहे चुनाव प्रचार के लिए दर्जनों केंद्रीय मंत्री, कई सूबों के मुख्यमंत्री, पार्टी के सांसद, विधायक और संगठन पदाधिकारियों को उतारा गया था। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भाजपा जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री एस जयशंकर, बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वान्ति श्रीनिवासन,  मध्य प्रदेश सीएम मोहन यादव, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक, सांसद उत्तरी दिल्ली मनोज तिवारी चुनाव प्रचार कर रहे थे। सीएम योगी ने कई सभाएं कीं, पीएम मोदी ने रोड शो किया था। बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल डेरा डाले रहे। पर जीत का लक्ष्य मुरझा गया।

बीते दो आम चुनावों में जीत का मार्जिन बढ़ा

साल 2014 में वाराणसी लोकसभा सीट पर 58.35 फीसदी वोटिंग हुई थी। तब यहां से पहली बार चुनाव लड़ने पहुंचे पीएम नरेंद्र मोदी को 5,81,022 वोट मिले थे। तब उन्होंने  निकटतम प्रतिद्वंदी के तौर पर आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को 3,71,784 वोटों से मात दी थी। साल 2019 के आम चुनाव में वाराणसी में वोटिंग का प्रतिशत घटकर 57.13 फीसदी हो गया था। तब पीएम मोदी ने 6,74,664 वोट हासिल करके समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव को 4, 79,505 वोटों से परास्त कर दिया था।

मौजूदा चुनावी जंग में वोटिंग प्रतिशत के साथ ही जीत का मार्जिन भी घटा

पर इस बार सूरते हाल बदल चुके थे। वोटिंग प्रतिशत में गिरावट का सिलसिला बरकरार रहा। साल 2024 में यहां 56.49 फीसदी वोटिंग हो  सकी। पीएम नरेंद्र मोदी को बीते चुनाव की तुलना में साठ हजार के करीब वोट कम मिले।  6,12,970 वोट पाकर पीएम मोदी ने कांग्रेस-सपा गठबंधन से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के अजय राय को 1,52,513 वोट से हरा तो दिया पर जीत का मार्जिन 3,26,992 वोट घट गया।

शहर दक्षिणी सीट पर रहा बीजेपी का सर्वाधिक निराशाजनक प्रदर्शन

शहर दक्षिणी की सीट जहां सर्वाधिक मंदिर और प्रसिद्ध घाट हैं, जिस क्षेत्र में काशी विश्वनाथ धाम है, जहां तीस हजार से अधिक हिंदू परिवार निवास करते हैं। पीएम की कुर्सी संभालते ही इसी क्षेत्र पर पीएम ने सबसे पहले नजरें इनायत की थीँ। पीएम मोदी के सर्वाधिक ड्रीम प्रोजेक्ट जिस क्षेत्र के हिस्से में आए वहां महज 97,878 वोट ही पीएम पा सके। अजय राय को 81,732 वोट मिले जबकि बीएसपी के अतहर जमाल 1032 वोट पाए। यहां पीएम मोदी की बढ़त का मार्जिन महज 29,510 ही रह गया। यहां से बीजेपी के विधायक है नीलकंठ तिवारी।

इन दो सीटों ने भी जीत के मार्जिन को बढ़ने नहीं दिया

सेवापुरी सीट पर पीएम मोदी के खाते में 1,08,890 वोट आए। जबकि कांग्रेस गठबंधन को 86,751 और बीएसपी को 14,491 वोट मिले। यहां बढ़त का आंकड़ा 22,139 ही रह पाया। वहीं, रोहनिया सीट पर अजय राय को 1,01,225 वोट मिले तो अतहर जमाल 10,527 वोट पाए। यहां 1,27,508 वोट पाकर पीएम मोदी महज 26,283 वोटों की ही बढ़त बना सके। सेवापुरी सीट से बीजेपी विधायक नीलरतन सिंह पटेल हैं जबकि रोहनिया से अपना दल (सोनेलाल) के सुनील पटेल विधायक हैं।

जीत के मार्जिन को सम्मानजनक हालत में ले जाने का श्रेय है इन सीटों को

शहर उत्तरी सीट से  पीएम मोदी को मिले 1,31,241 वोट, अजय राय को 1,01,731 और अतहर जमाल को 4,173 वोट। यहां 29, 510 वोटों की बढ़त कायम हो सकी। वाराणसी कैंट सीट में पीएम मोदी ने 1,45,922 वोट हासिल किए जबकि अजय राय के पक्ष में 87,645 लोगो ने वोट किया और बीएसपी को मिले 3,423 वोट। यहां से 58,277 वोटों की बढ़त पाकर पीएम मोदी की जीत का मार्जिन डेढ़ लाख का आंकड़ा पार कर सका। शहर उत्तरी से रविन्द्र जायसवाल और कैंट से सौरभ श्रीवास्तव बीजेपी विधायक हैं।

भूमिहार और पटेल वोटरों का बड़ा हिस्सा छिटक गया

सेवापुरी और रोहनिया सीट पर पटेल और भूमिहार वोटरों की तादाद सर्वाधिक है। यहां से सिटिंग विधायकों को खासतौर से स्वजातीय वोटरों को साधने का जिम्मा मिला था। भूमिहार वोटरों में पैठ बनाने के मकसद से ही चुनाव से पूर्व एमएलसी बनाए गए थे धर्मेंद्र सिंह जबकि सुरेन्द्र नारायण सिंह को वाराणसी संसदीय सीट के चुनाव संचालन की कमान सौंपी गई थी। पर ये कोशिशें उद्देश्य में सफल होती नहीं दिखीं।  क्योंकि भूमिहार वोटरों का बड़ा हिस्सा अजय राय की तरफ आकर्षित हुए जबकि पटेल वोटरों का भी एक हिस्से का झुकाव गठबंधन की ओर हो गया।

पुरानी टीम और चेहरों की कमी भी रही

साल 2014 और 2019 में वाराणसी सीट पर पीएम मोदी के चुनावी प्रबंधन की कमान संभाली थी सुनील ओझा ने। उनके साथ अरुण सिंह और सुनील देवधर भी थे। गुजरात के भावनगर से दो बार विधायक रहे सुनील ओझा साल 2013 से ही वाराणसी में सक्रिय हो गए थे जब गुजरात सीएम रहे नरेंद्र मोदी के यहां से चुनाव लड़ने की योजना तय हुई थी। लोकसभा चुनाव के बाद जब अमित शाह को यूपी का प्रभारी बनाया गया तो सुनील ओझा काशी के सह प्रभारी बनाए गए थे। ओझा ने यहां जमीनी स्तर पर काम किया और कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम तैयार की। बीते साल दिसंबर में ओझा का असमय निधन हो गया। जिसकी वजह से यहां चुनाव प्रबंधन की तैयारियों पर असर पड़ा।

संगठन में पसरी गुटबाजी, पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की अनदेखी पड़ी भारी

वाराणसी में बीजेपी से जुड़े एक समर्पित कार्यकर्ता ने पहचान उजागर न करने के वायदे के साथ जानकारी दी कि  जिन कार्यकर्ताओं ने पूर्ण मनोयोग से पार्टी के लिए पसीना बहाया उन्हें सरकार और संगठन में तवज्जो ही नहीं दी गई। पार्टी में कई गुट तैयार हो गए। परिक्रमा और जुगाड़ के जरिए पद हासिल करने पर जोर हो गया। उपेक्षा के शिकार कार्यकर्ताओं की उच्च स्तर से और भी अनदेखी हुई नतीजा वे मायूस हो गए। बीजेपी के इस कार्यकर्ता के मुताबिक यहां चुनाव प्रचार करने पहुंचे वीआईपी के इर्द गिर्द ही कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों का जमावड़ा जुटा रहा। पहले से हताशा सह रहे कार्यकर्ता मौसम की तपिश की मार से भी बेहाल हो गए और बीते दौर के मानिंद चुनाव  प्रचार में अपेक्षित ऊर्जा न लगा सके। नतीजा रहा कि आम वोटरों से मुकम्मल संपर्क नहीं साधा जा सका। रही सही कसर अग्निवीर योजना, संविधान बदलने की अफवाह के मुद्दे न पूरी कर दी। नतीजतन, शिव के धाम में पीएम मोदी की जीत के मार्जिन का लक्ष्य साधा न जा सका। 

द्विध्रुवीय चुनाव ने भी जीत का अंतर घटाया

साल 2014 में जब पीएम मोदी वाराणसी सीट पर चुनाव लड़ने पहुंचे तब यहां आम आदमी पार्टी और बड़े विपक्षी दलों सहित 42 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। साल 2019 में सपा-बीएसपी का गठबंधन था तो कांग्रेस अलग चुनाव लड़ी थी। कुल उम्मीदवार 26 थे। जाहिर है वोटों के बंटने का फायदा बीजेपी खेमे को हुआ। पर इस बार उम्मीदवारों की तादाद घटकर सात रह गई। कांग्रेस-सपा गठबंधन का असर रहा कि बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवार के बावजूद मुस्लिम वोटरों ने एकतरफा गठबंधन के पक्ष में वोटिंग की। मुकाबला द्विध्रुवीय हुआ तो बीजेपी विरोधी वोट अजय राय के पक्ष में लामबंद हो गए और जीत का मार्जिन कम हो गया। 

PTC News Himachal
PTC NETWORK
© 2024 PTC News Himachal. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network