Friday 22nd of November 2024

कावड़ यात्रा कब से होगी शुरू? जानें कावड़ यात्रा के प्रकार और इससे जुड़ी कथाएं

Reported by: PTC News Himachal Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  July 05th 2024 11:51 AM  |  Updated: July 05th 2024 11:52 AM

कावड़ यात्रा कब से होगी शुरू? जानें कावड़ यात्रा के प्रकार और इससे जुड़ी कथाएं

ब्यूरो: देवों के देव महादेव का सबसे प्रिय महीना सावन है। सावन माह में भगवान शिव और मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए सोमवार का व्रत रखते हैं और उनकी विशेष पूजा-अर्चना भी करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से जातक को मनचाहा वर प्राप्त होता है और महादेव का आशीर्वाद भी मिलता है। इसके अलावा सावन के महीने में कांवड़ यात्रा की शुरुआत होती है, जिसमें भारी तादाद में शिव भक्त शामिल होते हैं। क्या आपको पता है कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? अगर नहीं पता, तो आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

कब से शुरु होने जा रही है कांवड़ यात्रा

पंचांग के अनुसार इस बार कांवड़ यात्रा 22 जुलाई 2024 से शुरू होगी और इसका समापन सावन शिवरात्रि के दिन यानी 02 अगस्त 2024 को होगा।

कांवड़ यात्रा की पहली कथा

पौराणिक कथा के अनुसार श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। उनके अंधे माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा जाहिर की। तब उनके पुत्र श्रवण कुमार ने अपने कंधों पर कांवड़ में माता-पिता बैठाकर पैदल यात्रा की और उन्हें गंगा स्नान करवाया। इसके बाद श्रवण कुमार वहां से अपने साथ गंगाजल भी लेकर आए, जिससे उन्होंने भगवन शिव का विधिपूर्वक अभिषेक किया। ऐसा माना जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

कांवड़ यात्रा की दूसरी कथा

कांवड़ यात्रा के संबंध में दूसरी कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान करने से महादेव का गला जलने लगा, तब उस स्थिति में देवी-देवताओं ने गंगाजल से प्रभु का जलाभिषेक किया। जिससे महादेव को विष के असर से मुक्ति मिली। ऐसा माना जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

कांवड़ यात्रा के प्रकार

कांवड़ यात्रा मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। जिसमें पहली डाक कांवड़ और दूसरी खड़ी कांवड़ यात्रा है। डाक कांवड़ यात्रा में कांवड़िए बिना रुके हुए यात्रा पूरी करते हैं इसलिए इस यात्रा को कठिन माना जाता है। जबकि खड़ी कांवड़ यात्रा में मुख्य कांवड़ियों के साथ उनके सहयोगी अपने कंधों पर उनकी कांवड़ ले लेते हैं और कांवड़ को लेकर वह एक ही जगह पर खड़े रहते हैं। 

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