Sunday 29th of September 2024

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के कत्ल की कहानी जब उन्हें बम से उड़ा दिया गया

Reported by: PTC News Himachal Desk  |  Edited by: Dalip Singh  |  July 16th 2024 04:23 PM  |  Updated: July 17th 2024 01:53 PM

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के कत्ल की कहानी जब उन्हें बम से उड़ा दिया गया

साल था 2013 तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि बेहद मुश्किल दिनों से निकालकर पंजाब को फिर शांति की राह पर लेकर आना आसान काम नहीं था। अगर हमारे समाज में शांति और धर्मनिरपेक्षता है तो उस शख्स की वजह से ही है। वो बात कर रहे थे पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की।

बेअंत सिंह को राजनीति का लंबा तज़रबा था, कांग्रेस पार्टी के वफादारों में से एक थे। जब पंजाब अस्सी और नब्ब के दशक में बुरे दौर से गुज़र रहा था तब बेअंत सिंह आगे आए और अपनी पार्टी को विश्वास दिलाया कि राज्य से आतंकवाद और हथियारबंद लहर को कुचले देंगे।

पर उन्हें नहीं पता था कि जल्द ही उनकी सरकारी सुरक्षा व्यवस्था को तोड़कर उन्हें पुलिस के पहरे में ही मौत की नींद सुला दिया जाएगा। बात उस दिन की जब बेअंत सिंह औऱ उनके करीबियों को अंदाज़ा भी नहीं था कि वो दिन उनकी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा।

बेअंत सिंह के सरपंच से विधायक बनने का सफर 

साल 1922 में बेअंत सिंह पैदा हुए। लुधियाना में उनका गांव पड़ता है बिलासपुर। बेअंत सिंह ने ग्रेजुएशन गवर्मेंट कालेज लाहौर से की और फिर फौज में भर्ती हो गए।

मुश्किल से दो से तीन साल फौज में बिताने के बाद बेअंत सिंह ने सेना छोड़ दी और गांव वापस आ गए। समाज सेवा और राजनीति में कदम रखा, साल 1959 में पहली बार बिलासपुर गांव से सरपंच चुने गए।

सरपंच बनने के करीब दस बाद मौका आया जब वो पहली बार आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर लड़े और पायल सीट से जीतकर पंजाब विधान सभा पहुंचे।

यही वो दौर था जब बेअंत सिंह के राजनीतिक सफर ने रफ्तार पकड़ी, समय गुज़रता गया कांग्रेस पार्टी में बेअंत सिंह का कद बढ़ता गया और साथ ही पंजाब में हालात भी ख़राब होते गए।

वो दौर भी आया जब हरिमंदिर साहिब पर भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर में फौजी कारवाई भी हुई, साल था 1984, हालांकि इस कार्रवाई की कीमत इंदिरा गांधी को अपनी जान गंवा कर उतारनी पड़ी।

उस दौर तक पंजाब में माहौल एसा था कि कोई दिन नहीं गुज़रता जब लाशें नहीं गिरती थीं।सुरक्षाबलों और हथियारबंद संगठनों की मुठभेड़ आम बात हो गई थी।

खालिस्तान की मांग ज़ोरों पर थी, दिन रात एनकाउंटर होने लगे, खून खराबा बढ़ता गया। तभी आया साल 1992 पंजाब के बारहवें मुख्यमंत्री के तौर पर बेअंत सिंह को मौका मिला पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का और साथ ही ज़िम्मेदारी मिली पंजाब मे जारी हथियारबंद लहर को कुचल देने की।

साल 1992 से 1995 तक पंजाब में सुरक्षा बल और पुलिस इतनी मज़बूत हो गई कि विद्रोह की हर आवाज़ को खामोश किया जाने लगा।

बेअंत सिंह पर गंभीर इल्ज़ाम लगने कि उन्होनें मानव अधिकारों को दरकिनार किया।मासूमों को उठाकर एनकाउंटर किये जाने लगे ऐसे गंभीर इल्ज़ाम भी लगने लगे, वर्दी वालों को फ्री हैंड दे दिया गया।

हालांकि एक तबका वो भी था जो बेअंत सिंह के कार्यकाल को सही कहता था और दिल्ली में बेअंत की तारीफ भी होती थी।

लेकिन एक तरफ बेअंत सिंह को लेकर गुस्सा भी बढ़ रहा था और उस गुस्से के नतीजे ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। 

ये भी पढ़ें: कहानी भारत में लगी इमरजेंसी की, जानिए कैसे इंदिरा गांधी के एक फैसले से बदल गया था हिंदुस्तान

बेअंत सिंह की हत्या का दिन

साल 1995 का आया, दिन था 31 अगस्त। बेअंत सिंह रोज़ की तरह उठे लेकिन शाम को हमेशा के लिए मौत की नींद सो जाएंगे किसी को भनक तक नहीं थी।

रोज़ की तरह बेअंत सिंह लोगों से मिल रहे थे, सरकारी फाईलों पर साईन कर रहे थे। जगह थी सिविल सेक्रेटेरियट चंडीगढ़।

शाम के पांच बज चुके थे और सुरक्षा कर्मियों को संदेश मिला कि मुख्यमंत्री साहब लिफ्ट तक पहुंच गए हैं और किसी भी वक्त ग्राउंड फ्लोर पर पहुंच जाएंगे, काफिला तैयार रखा जाए।

बेअंत सिंह ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे और अपनी एंबेस्डर कार तक पहुंच गए, समय हुआ था शाम के 5:05 मिनट।

अचानक बहुत बड़ा धमाका हुआ, सब लोग सुन्न पड़ गए, बेअंत सिंह के पोते गुरकीरत कोटली भी उस वक्त सिविल सेक्रेटेरियट की बिल्डिंग में मौजूद थे। बिल्डिंग के कई दरवाज़े और शीशे टूट गए, किसी को कुछ समझ में नहीं आया।

लोग भागकर बेअंत सिंह की गाड़ी की तरफ पहुंचे जहां बेअंत सिंह के स्टाफ के लोगों की लाशें बिखरी पड़ी थीं। उनकी गाड़ी जल रही थी पर बेअंत सिंह कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे क्योंकि लाशें पहचान में नहीं आ रही थीं।

तभी बेअंत सिंह के ओएसडी देविंदर सरोया भागते हुए पहुंचे। उन्हें ज़्यादा समय नहीं लगा बेअंत सिहं के बारे में पता करने में, बुरी तरह से जली एक लाश दिखी, हाथ में कड़ा दिखाई दिया।

देविंदर सरोया ने पहचान लिया कि ये वही कड़ा है जो बेअंत सिंह पहनते थे तब जा कर पता चला कि धमाके में मारे गए करीब डेढ़ दर्जन लोगों में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह भी थे।

ह्यूमन बम बन कर आया हमलावर

मुख्यमंत्री को मारने के लिए बहुत पहले से प्लान बनाया जा रहा था। हमले वाले दिन पंजाब पुलिस में अफसर रहा दिलावर सिंह पुलिस वर्दी में बेअंत सिंह की तरफ बढ़ा। वो ह्यूमन बम बन कर आया था यानि अपने शरीर पर बम बांध कर बेअंत सिंह के पास जा कर ब्लास्ट कर दिया।

एक और शख्स इस कत्लकांड के वक्त वहां मौजूद था, नाम था बलवंत सिंह राजोआना। पंजाब पुलिस के जवान रहे राजोआना भी वहां बैकअप के तौर पर खड़े थे कि अगर दिलावर सिंह वाला प्लान फेल हुआ तो वो अपना काम करेंगे।

राजोआना समेत कई लोग इस मामले में गिरफ्तार किये गए।

हमने बेअंत सिंह को सिख मर्यादा के अनुसार मारा- राजोआना

केस लंबा चला, मुख्य आरोपी थे गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह, शमशेर सिंह, जगतार सिंह तारा, जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह राजोआना।

साल 2004 में चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल में सुरंग बना कर कुछ लोग भाग निकले जिसमें जगतार सिंह तारा और जगतार सिंह हवारा भी थे। हवारा को कुझ समय बाद पकड़ लिया गया जो इस वक्त दिल्ली की तिहाड़ जेल में है। जगतार सिंह तारा को कई साल बाद थाईलैंड में पकड़ा गया।

बलवंत सिंह राजोआना को साल 2007 में फांसी की सज़ा सुनाई गई पर ज़बरदस्त विरोध के चलते फांसी की सज़ा पर रोक लग गई।मामला अदातल में है और राजोआना अब तक 25 साल से ज्यादा जेल में बिता चुके हैं।

बेअंत सिंह की हत्या करने वाले अपने स्टैंड पर कायम हैंं और कहते हैं कि बेअंत सिंह से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी। बेअंत सिंह ने मानवाधिकारों का उलंघन किया कोई भी कानून इजाज़त नहीं देता कि आप लोगों को उनके घरों से निकालकर मारें।

'हमने बेअंत सिंह को सिख मर्यादा के अनुसार मारा'

PTC News Himachal
PTC NETWORK
© 2024 PTC News Himachal. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network