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मोदी सरकार का चुनावी प्रस्ताव: 'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर उठे सवाल और समर्थन

Reported by: PTC News Himachal Desk  |  Edited by: Raushan Chaudhary  |  September 18th 2024 07:32 PM  |  Updated: September 18th 2024 07:33 PM

मोदी सरकार का चुनावी प्रस्ताव: 'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर उठे सवाल और समर्थन

डेस्क: मोदी कैबिनेट ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसे आगामी संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। ये प्रस्ताव देश के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि ये चुनावी प्रक्रिया के मूलभूत ढांचे को बदलने करने की क्षमता रखता है। जहां NDA के सहयोगी दल इस विचार का समर्थन कर रहे हैं, वहीं विपक्षी नेता इसे लोकतंत्र और संघवाद के खिलाफ एक गंभीर खतरा मान रहे हैं।

हालांकि देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए हैं। इस व्यवस्था के तहत चार बार चुनाव हुए, जिसमें राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ होते थे। इसके बाद 1968-1969 के बीच कुछ राज्यों की विधानसभा भंग हो गई, जिससे ये सिलसिला टूट गया। वहीं, वर्ष 1971 में भी समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए गए।

 

मल्लिकार्जुन खड़गे ने क्या कहा?

फिलहाल मोदी कैबिनेट के प्रस्ताव पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गंभीर सवाल उठाए। उनका कहना है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे बीजेपी चुनावी समय में ध्यान भटकाने के लिए उठाती है। उन्होंने इसे संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए कहा, "यह केवल एक प्रचार स्टंट है। देश इसे स्वीकार नहीं करेगा।"

ओवैसी ने किया विरोध

 

AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस मुद्दे को लेकर और भी तीखी प्रतिक्रिया दी। उनका कहना है, "यह प्रस्ताव संघवाद को नष्ट करने वाला है। जब पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को स्थानीय निकाय चुनावों में कोई समस्या नहीं है, तो हमें एक साथ चुनाव कराने की आवश्यकता क्यों है?" उन्होंने बार-बार चुनावों को लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए आवश्यक बताते हुए इसे एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी बताया।

 

डेरेक ओ ब्रायन ने उठाए सवाल

TMC के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने भी इस प्रस्ताव को बीजेपी का एक और 'सस्ता हथकंडा' कहा। उन्होंने कहा, "आप हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावों की घोषणा क्यों नहीं कर रहे हैं, जबकि आप 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का समर्थन कर रहे हैं? क्या आप एक बार में तीन राज्यों में चुनाव करा सकते हैं?" उनका यह भी कहना था कि प्रस्ताव के अंतर्गत राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को कम करने या बढ़ाने के लिए कितने संवैधानिक संशोधन किए जाएंगे, इस पर स्पष्टता की आवश्यकता है।

बसपा की सहमति

वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के प्रस्ताव पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस व्यवस्था के तहत लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों को एक साथ कराने की मंजूरी केंद्रीय कैबिनेट द्वारा दी गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी का दृष्टिकोण इस विषय पर सकारात्मक है, लेकिन यह आवश्यक है कि इसका उद्देश्य देश और जनता के हित में हो।

सपा ने किया समर्थन

अखिलेश यादव की पार्टी ने केंद्र सरकार के फैसले के समर्थन किया है। सपा प्रवक्ता रविदास मल्होत्रा ने कहा कि हम लोग चाहते हैं देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में हों। वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने से पहले सभी विपक्षी पार्टियों और सभी मुख्यमंत्रियों की बैठक होनी चाहिए। समाजवादी पार्टी देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। अखिलेश यादव, राहुल गांधी और विपक्षी दलों के नेताओं की सहमति से इसपर आगे कार्रवाई होनी चाहिए। हम लोग चाहते हैं देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में हों लेकिन बीजेपी की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। अगर वो चाहते हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो तो सर्वदलीय बैठक बुलाने का काम करें, 2027 में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं उसी के साथ केंद्र की सरकार संसद भंग कर एकसाथ चुनाव करा दें। 

 

चुनाव आयोग का रुख?

चुनाव आयोग ने कई बार कहा है कि वह एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों को करा सकता है। मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार के मुताबिक, एक ही समय में संसदीय और राज्य विधानसभा चुनाव कराने का विषय चुनाव आयोग के दायरे में नहीं आता है। उन्होंने कहा कि इसमें निश्चित रूप से बहुत सारे रसद, बहुत सारे व्यवधान शामिल हैं, लेकिन यह कुछ ऐसा है जो विधायिकाओं को तय करना है। उन्होंने कहा था कि निश्चित रूप से अगर ऐसा किया जाता है, तो हमने अपनी स्थिति सरकार को बता दी है कि प्रशासनिक रूप से आयोग इसे संभाल सकता है।

इस बहस में विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो इससे राजनीतिक स्थिरता बढ़ सकती है, लेकिन इसके साथ ही चुनावों की समयबद्धता और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी का भी खतरा है। ऐसे में आम जनता के मुद्दे और स्थानीय चुनावों की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सभी राजनीतिक दलों के बीच इस प्रस्ताव को लेकर विचार-विमर्श जारी है। जैसे-जैसे संसद का शीतकालीन सत्र नजदीक आ रहा है, इस विषय पर चर्चा और गहराने की संभावना है।

इतिहास

भारत में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की अवधारणा पहले भी लागू थी, जब देश की स्वतंत्रता के बाद 1951-52 में पहली बार आम चुनाव हुए थे। उस समय, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे, जिससे चुनावी प्रक्रिया में सरलता और दक्षता बनी रहती थी।

हालांकि, 1967 के बाद से राज्यों में चुनावी चक्र अलग-अलग होने लगे। इसके पीछे कई कारण थे, जैसे:

1.  राजनीतिक अस्थिरता: विभिन्न राज्यों में राजनीतिक दलों की स्थिति और सरकारों के कार्यकाल अलग-अलग थे, जिससे चुनावी समय में भिन्नता आ गई।

2.  स्थानीय मुद्दे: राज्यों के स्थानीय मुद्दे और जरूरतें भी भिन्न थीं, जिससे अलग-अलग समय पर चुनाव कराना आवश्यक हो गया।

3.  संविधानिक प्रावधान: संविधान में यह प्रावधान है कि राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल होता है, लेकिन अगर कोई सरकार अस्थिर होती है या बहुमत खो देती है, तो चुनाव समय से पहले भी कराए जा सकते हैं।

इन कारणों से, चुनावी चक्र अलग-अलग होने लगा, और वर्तमान में लोकसभा और विधानसभा चुनाव आमतौर पर अलग-अलग समय पर होते हैं।

अब 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के प्रस्ताव का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल और लागत-कुशल बनाना है, लेकिन इसके लिए राजनीतिक सहमति और संवैधानिक बदलाव की आवश्यकता है।

 

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