Sunday 29th of September 2024

Kolkata Doctor Rape Case: कोलकाता रेप विक्टिम के घर किए गए थे 3 कॉल, सामने आई रिकॉर्डिंग

Reported by: PTC News Himachal Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  August 30th 2024 01:06 PM  |  Updated: August 30th 2024 03:37 PM

Kolkata Doctor Rape Case: कोलकाता रेप विक्टिम के घर किए गए थे 3 कॉल, सामने आई रिकॉर्डिंग

ब्यूरो: कोलकाता रेप-मर्डर केस को लेकर नई जानकारी सामने आई है। इसके मुताबिक, आरजी कर मेडिकल कॉलेज की तरफ से ट्रेनी डॉक्टर के पेरेंट्स को बताया गया था उनकी बेटी ने सुसाइड कर लिया है। 9 अगस्त की सुबह ट्रेनी डॉक्टर की लाश मिलने के बाद अस्पताल की असिस्टेंट सुपरिनटैंडैंट ने उनके पेरेंट्स को आधे घंटे के अंदर तीन कॉल किए थे। पहला कॉल सुबह 10:53 बजे किया गया।

इन कॉल्स में पेरेंट्स को जल्द से जल्द अस्पताल आने के लिए कहा गया था। तीनों फोन कॉल के ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। ये बंगाली में हैं। हालांकि पीटीसी भारत इन ऑडियो की पुष्टि नहीं करता है। हालांकि, विक्टिम के पेरेंट्स ने घटना के अगले दिन ही दावा किया था कि अस्पताल ने उनकी बेटी के मर्डर को सुसाइड बताने की कोशिश की थी।

परिवार की बेटी, आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक डॉक्टर, पिछली शाम अपनी शिफ्ट के लिए निकल गई थी। उसने हमेशा की तरह, रात 11:30 बजे अपनी माँ को कॉल करके हालचाल पूछा। उसकी माँ को नहीं पता था कि यह उनकी आखिरी बातचीत होगी, इसलिए उसने कुछ ही देर बाद कॉल खत्म कर दी।

अगली सुबह तक, परिवार का जीवन पूरी तरह से बिखर चुका था। मीडियाकर्मियों ने अस्पताल में 31 वर्षीय डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के बाद सुबह पीड़िता के माता-पिता को किए गए तीन फोन कॉल की ऑडियो रिकॉर्डिंग प्राप्त की है। ऑडियो में उस भ्रम और सदमे को कैद किया गया है, जिसे बुजुर्ग माता-पिता ने अपनी बेटी के क्रूर शरीर को देखने के लिए अस्पताल पहुंचने से पहले झेला था।

पहला कॉल (1 मिनट 46 सेकेंड तक चला)

एक महिला ने पेरेंट्स को कॉल कर कहा- मैं आरजी कर अस्पताल से बात कर रही हूं। क्या आप तुरंत अस्पताल आ सकते हैं?

पिता ने वजह पूछी। जवाब मिला- आपकी बेटी की हालत ठीक नहीं है। हम उसे अस्पताल में भर्ती करा रहे हैं। क्या आप तुरंत आ सकते हैं?

पिता ने जोर देकर पूछा- मेरी बेटी को क्या हुआ है?

स्टाफ मेंबर ने कहा- आप जब यहां आएंगे तो डॉक्टर्स आपको बताएंगे क्या हुआ है। आप परिवार है इसलिए हमने आपका नंबर ढूंढा और फोन किया। प्लीज आप जल्द से जल्द आ जाइए। आपकी बेटी को एडमिट कराया गया है।

विक्टिम की मां ने पूछा- क्या उसे बुखार आ गया है?

स्टाफ मेंबर ने कहा- आप बस जल्दी आ जाइए।

पिता ने पूछा- क्या उसकी हालत सीरियस है?

जवाब मिला- हां उसकी हालत बहुत सीरियस है। आप जल्दी आ जाइए।

दूसरा कॉल (46 सेकेंड तक चला)

5 मिनट बाद पेरेंट्स के पास दूसरा कॉल आया।

उसी हॉस्पिटल स्टाफ मेंबर ने पहले से ज्यादा घबराई हुई आवाज में कहा- आपकी बेटी की हालत बहुत नाजुक है। प्लीज जितना जल्दी हो सके, आ जाइए।

पिता ने चिंतित होकर पूछा कि आखिर हुआ क्या है। उन्हें जवाब मिला- डॉक्टर्स आपको बता पाएंगे। आप जल्दी आ जाइए।

पिता ने पूछा- कौन बोल रहा है

स्टाफ मेंबर ने जवाब दिया- मैं असिस्टेंट सुपरिनटैंडैंट हूं, डॉक्टर नहीं हूं।

पिता ने पूछा- क्या कोई डॉक्टर मौजूद है जो मेरे सवालों का जवाब दे सके, लेकिन स्टाफ मेंबर ने कॉल कट कर दिया।

तीसरा कॉल (28 सेकेंड तक चला)

तीसरे और आखिरी कॉल में स्टाफ मेंबर ने कहा- आपकी बेटी ने शायद सुसाइड कर लिया है या उसकी मौत हो गई है। पुलिस यहां आ चुकी है। हम अस्पताल में हैं, सभी के सामने आपको ये कॉल की जा रही है। जल्दी आ जाइए।

पीड़िता के माता-पिता के साथ अस्पताल प्रशासन के संचार की कलकत्ता उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों में गहन जांच की गई है। उच्च न्यायालय में अपनी याचिका में, माता-पिता ने आरोप लगाया कि उन्हें तीन घंटे तक इंतजार कराया गया, यह सुझाव देते हुए कि यह देरी जानबूझकर की गई हो सकती है।

हालांकि, कोलकाता पुलिस की समय-सीमा इस दावे का खंडन करती है। उनके रिकॉर्ड के अनुसार, माता-पिता दोपहर एक बजे अस्पताल पहुंचे और उन्हें सेमिनार हॉल में ले जाया गया, जहां मात्र दस मिनट बाद उनकी बेटी का शव मिला।

अदालतों ने यह भी सवाल उठाया है कि तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष के नेतृत्व में अस्पताल प्रशासन ने तुरंत औपचारिक पुलिस शिकायत क्यों नहीं दर्ज की, जिससे पुलिस को अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज करना पड़ा। पीड़िता के पिता द्वारा औपचारिक शिकायत दर्ज कराने के बाद ही देर रात एफआईआर दर्ज की गई।

पीड़िता के पिता ने बाद में उस दिल दहला देने वाले पल को याद किया जब उन्होंने अपनी बेटी का शव देखा। उन्होंने कहा, "केवल मैं ही जानता हूं कि जब मैंने उसे देखा तो मैं क्या कर रहा था। उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। वह केवल एक चादर में लिपटी हुई थी। उसके पैर अलग थे, और उसका एक हाथ उसके सिर पर था।"

इस दुखद मामले ने कोलकाता पर गहरा असर छोड़ा है, जिसने अस्पताल के प्रोटोकॉल, पुलिस प्रक्रियाओं और एक होनहार युवा डॉक्टर के लिए न्याय की खोज पर सवाल उठाए हैं, जिसका जीवन क्रूरता से समाप्त कर दिया गया। माता-पिता अपनी बेटी के लिए जवाबदेही और न्याय के लिए अपनी लड़ाई जारी रखते हैं, जिसने दूसरों को बचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था।

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