Monday 25th of November 2024

हरियाणा में कांग्रेस-आप के गठबंधन से राहुल गांधी साधेंगे 5 निशाने, प्रदेश से लेकर नेशनल पॉलिटिक्स तक नजर

Reported by: PTC News Himachal Desk  |  Edited by: Md Saif  |  September 04th 2024 01:14 PM  |  Updated: September 04th 2024 01:14 PM

हरियाणा में कांग्रेस-आप के गठबंधन से राहुल गांधी साधेंगे 5 निशाने, प्रदेश से लेकर नेशनल पॉलिटिक्स तक नजर

ब्यूरो:  हरियाणा की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस जहां इस बार अपने दमपर सत्ता में वापसी की हंकार भर रही थी, तो वहीं चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी से गंठबंधन की पहल कर सभी को चौंका दिया। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हरियाणा में 5 सीटों पर रोकने के बाद गद-गद कांग्रेस पार्टी शुरु से ही सभी 90 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का दम भर रही थी। लेकिन नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने न केवल खुद गठबंधन की पहल की बल्कि आम आदमी पार्टी से बात करने के लिए 4 सदस्य कमेटी का भी गठन कर दिया। इस कमेटी में राहुल गांधी के करीबी और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया और हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान शामिल हैं। भले ही हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के नेता अपने दम पर चुनाव जीतने का दमखम दिखा रहे हों, लेकिन राहुल गांधी विधानसभा चुनाव में आप से गठबंधन कर प्रदेश से लेकर देश तक कई बड़े मैसेज देना चाहते हैं।

हरियाणा में कांग्रेस-आप के गठबंधन वाले एक तीर से पांच निशाने साधेंगे राहुल गांधी?

भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा को दिया साफ इशारा

लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस प्रदेश स्तर पर गुटों में बंटी हुई है। ठीक ऐसा ही हरियाणा में है, जहां कांग्रेस में 2 गुट हैं। इसमें पहला गुट पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा का और दूसरा गुट कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला का है। माना जाता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान हु़ड्डा के करीबी हैं इसलिए संगठन पर हुड्डा की पकड़ है। किरण चौधरी ने पार्टी से इस्तीफा देते हुए भी यही आरोप लगाया था।  हुड्डा लोकसभा चुनाव के बाद से ही दावा कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में पार्टी अपने दमपर चुनाव लड़ेगी। जबकि कांग्रेस हाईकमान इस बारे में चुप्पी साधे हुई थी। हुड्डा लगातार हाईकमान को दरकिनार करते हुए अपना दावा ठोक रहे थे। ऐसे में राहुल गांधी ने खुद गठबंधन की पहल कर हुड्डा खेमें को साफ मैसेज दे दिया कि वे खुद को पार्टी के ऊपर न समझें। 

गुजरात जैसी गलती न दोहरा कर, एंटी इनकंबेंसी वाले वोटों का बिखराव रोकने की कोशिश

बीजेपी साल 2014 से हरियाणा की सत्ता पर काबिज है, ऐसे में चुनाव रणनीतिकार मानते हैं कि 10 सालों में सत्ता के प्रति एंटी इनकंबेंसी बन जाती है। इसका अंदाजा खुद बीजेपी को भी था, तभी भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री को बदल दिया। अगर कांग्रेस को एंटी इनकंबेंसी वोटों का एकमुश्त फायदा चाहिए तो जरुरी है कि वो अपने वोट बंटने ना दे। अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी चुनाव में अलग-अलग उतरते तो जाहिर सी बात है कि वोटों का बिखराव होता, क्योंकि हरियाणा के कुछ हिस्सों में आप का भी अच्छा खासा जनाधार है।

पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरे थे, इस वजह से वहां एंटी इनकंबेंसी वाले वोटों का विखराव हो गया था। जिसका नुकसान दोनों को उठाना पड़ा था। इसलिए भले ही प्रदेश कांग्रेस के नेता अकेले चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हों, लेकिन उन्हें भी कहीं न कहीं इसके नफे-नुकसान का अंदाजा है। अगर कांग्रेस और आप अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरे हैं तो हरियाणा में सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी वाले वोटों के सामने मुख्य तौर पर दो विकल्प होंगे, जिसमें से हरियाणा की जनता अपने हिसाब से उनका चुनाव करेगी। लेकिन अगर दोनों पार्टियां साथ आती हैं तो वे एक ही विकल्प के तौर पर सामने आएंगी, जिससे वोटों का बिखराव नहीं होगा।

बीजेपी की गैर जाट पालिटिक्स का तोड़

हरियाणा में बीजेपी गैर-जाट राजनीति करती है। इसके सीधे तौर पर दो उदाहरण देखने के लिए मिले हैं। बीजेपी के पास 2014 के बाद दो बार सीएम चुनने का मौका आया तो बीजेपी ने दोनों बार गैर-जाट मुख्यमंत्री को आगे किया। जिसमें पहले पंजाबी सीएम मनोहर लाल खट्टर और चुनाव से ठीक पहले ओबीसी चेहरे नायब सैनी का नाम शामिल है। जिससे बीजेपी संकेत देना चाहती थी कि वो इस बार भी गैर जाट वोट बैंक के लिए जमीनी स्तर पर अपनी रणनीति बना रही है। ठीक इसके विपरीत कांग्रेस हरियाणा में पूरी तरह से जाट वोट बैंक पर निर्भर है। लेकिन जाट पूरी तरह से कांग्रेस को ही वोट करे ये भी संभव नहीं है, क्योंकि हरियाणा के दो और बड़े दल जाट वोट में सेंध मारी करने की पूरी कोशिश में हैं। इसमें हरियाणा की सत्ता में हिस्सेदार रही दुष्यंत चौटाला की जेजेपी और कांग्रेस ही अलग होकर बनी अभय चौटाला की इनेलो शामिल हैं। ये दोनों ही दल बीजेपी से उलट जाट वोट बैंक पर निर्भर हैं और कांग्रेस के जाट वोट बैंक में सेंधमारी करेंगे। 

कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले उदयभान को सौंप कर दलित वोटों को साधने की कोशिश की थी, जिसका फायदा कुछ हद तक लोकसभा चुनाव में देखने को भी मिला। लेकिन इनेलो का बसपा और जेजेपी का चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन करने के बाद से दलित वोट भी छिटक सकते हैं। इसलिए कांग्रेस के लिए जरुरी है कि वे आप को साथ लाकर अपने हिस्से के वोट बंटने से रोके।

पीएम मोदी के परजीवी वाले बयान को नकार कर नेशनल पॉलिटिक्स में मिसाल कायम करना चाहती है कांग्रेस

हाल ही में पीएम मोदी ने संसद में कांग्रेस पर हमला करते हुए उसकी तुलना परजीवी से की थी। यानि जिन राज्यों में कांग्रेस मजबूत है वहां वो अपने दम पर चुनाव लड़ती है, लेकिन कांग्रेस जहां सत्ता की जमीन के लिए मेहनत कर रही है वहां वो सहयोगी के कंधे पर बैठकर चुनाव लड़ती है। पीएम मोदी इशारों ही इशारों में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के बीच एक खाई पैदा करने कोशिश कर रहे थे। इसका उदहारण पिछले साल हुए मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। जहां अखिरी वक्त तक कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सीटों पर सहमित नहीं बन पाई और इंडिया ब्लाक में रहते हुए समाजवादी पार्टी ने अकेले ही चुनाव लड़ा। इस वजह से हरियाणा में आप से गठबंधन कर कांग्रेस मिसाल कायम करना चाहती है कि वो जहां मजबूत है, वहां भी छोटे दलों को साथ लेकर चलती है।

I.N.D.I.A. ब्लॉक में शामिल दलों को भरोसे में लेना चाहती है कांग्रेस

राहुल गांधी हरियाणा में आप से गठबंधन कर राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को एक मिसाल के तौर पर पेश करना चाहते हैं। कांग्रेस-आप के गठबंधन से राहुल गांधी इंडी गठबंधन में शामिल दलों को मैसेज देना चाहते हैं कि कांग्रेस प्रदेश स्तर पर भी कमजोर दलों के साथ हैं। राहुल गांधी ने अपने बयान में स्पष्ट किया था कि वे बीजेपी को रोकने के लिए हर फैसले लेने के लिए तैयार हैं। इससे उन छोटे दलों को कांग्रेस पर भरोसा बढ़ेगा, जो सोचते हैं कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में उनके वोट बैंक का फायदा उठाकर विधानसभा चुनावों में उन्हें अलग-थलग कर देती है।

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